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जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग ।
पश्चात राम उस यक्षका सन्मान कर वहाँसे रवाना हुए। गोकर्णने अपनी रची हुई नगरीको वापिस मिटा दिया। लक्ष्मण और वनमालाका मिलन !
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राम, लक्ष्मण और जानकी चलते हुए कई जंगलोंको काँध कर एक दिन संध्या के समय ' विजयपुर नगरके पास पहुँचे। वहीं नगरके बाहिर दक्षिण दिशामें एक उद्यान था उसमें; घरके समान बहुत बड़ा एक वट-वृक्ष था उसके नीचे उन्होंने विश्राम किया ।
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उस नगरके राजाका नाम ' महीधर ' था । उसकी रानीका नाम ' इन्द्रानी ' था । उससे एक ' वनमाला ' नामा कन्या उत्पन्न हुई थी ।
उस ' वनमाला ' ने बचपनहीसे 'लक्ष्मण ' की गुणसंपत्ति और रूप-संपत्तिकी बातें सुनी थीं; इस लिए लक्ष्मणके सिवा वह और किसीको वरना नहीं चाहती थी ।
दशरथने दीक्षा ली; और रामलक्ष्मण वनमें रवाना हो गये । यह खबर जब महीधरको लगी तब वह मनमें बहुत दुखी हुआ । और उसने ' चंद्रनगर ? के राजा वृषभ ' के पुत्र ' सुरेन्द्ररूप' के साथ वनमालाका संबंध ठीक किया है.
वनमालाको यह खबर लगी । उसने मरनेका निश्चय किया; और जिस रातको राम, लक्ष्मण व सीता वहाँ पहुँचे थे उसी रातको वह घरसे, मरनेको, निकली और