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सीताहरण।
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उसी समय पिशाचके तुल्य दारुण कपिल बाहिरसे घर आया । उसने रामादिको घरमें बैठे देख गुस्से हो, अपनी स्त्रीसे कहा:-" रे पापिनी! तूने मेरा अग्निहोत्र
अपवित्र कर दिया।" __लक्ष्मणने, क्रोध करते हुए उस कपिलको, हाथीकी
भाँति पकड़कर आकाशमें भमाना शुरू किया । तब रामने कहा:-" हेमानद ! एक कीड़ेके समान चिल्लाते हुए इस अधम ब्राह्मण पर कोप क्या करते हो? इसको छोड़ दो।"
रामकी ऐसी आज्ञा होते ही लक्ष्मणने उस ब्राह्मणको धीरेसे छोड़ दिया। पीछे सीता और लक्ष्मण सहित राम उसके घरमेंसे निकलकर आगे चले ।
गोकर्ण यक्षका रामपुरी बनाना।। अनुक्रमसे वे एक दूसरे बड़े अरण्यमे पहुँचे । कज्जलके समान श्याम मेघोंका समय-वर्षाऋतु-आया। बारिश बरसनेसे राम एक वटवृक्षके नीचे आये और बोले:-" इस वटवृक्षके नीचे ही हम वर्षाकाल बितायँगे।" ___ यह बात सुनकर उस वडपर रहनेवाला अधिष्ठायक * इभकर्ण' यक्ष भयभीत होगया। इस लिए वह अपने प्रभु 'गोकर्ण' यक्षके पास गया और प्रणाम करके उससे कहने लगाः-" हे स्वामी ! किसी दुःसह तेजवाले पुरुषोंने आकर मुझे मेरे निवास स्थान, वटवृक्षसे निकाल दिया है । इस लिए हे प्रभु! मुझ शरणहीनकी रक्षाकरो।