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जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग ।
वे मेरे निवासवाले वट-वृक्षके नीचे सारी वर्षाऋतु वितानेवाले हैं। "
विचक्षण गोकर्ण ने अवधि ज्ञानसे जानकर, कहाः "जो पुरुष तेरे घर आये हैं, वे आठवें बलभद्र और वासुदेव हैं। इस लिए वे पूजा करने के योग्य हैं । '
फिर गोकर्ण यक्ष रात्रिमें उसके साथ जहाँ राम ठहरे हुए थे वहाँ गया । और रातहीमें नौ योजन चौड़ी, बारह योजन लंबी, धनधान्य पूरित ऊँचे किले और बड़े बड़े प्रासादोंवाली और विविध भाँति के पदार्थोंसे पूर्ण ऐसी एक नगरीको उसने बसाया । नाम उसका 'रामपुरी' रक्खा ।
प्रातःकाल ही मंगल शब्द ध्वनि सुनकर राम जागृत हुए । उन्होंने वीणाधारी यक्षको और सारी समृद्धिवाली उस पुरीको देखा । अकस्मात बनी हुई उस नगरीको देखकर रामचंद्र को विस्मय हुआ ।
यक्षने विस्मित रामचंद्र से कहाः " हे स्वामी, आप जबतक यहाँ रहेंगे तबतक मैं रातदिन संपरिवार आपकी सेवा करूँगा । अतः आप इच्छानुसार यहाँपर आनंइसे रहें । "
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रामका कपिलको दान देना ।
एकवार कपिल ब्राह्मण समिध लेनेके लिए हाथमें कुल्हाड़ी लेकर भटकता हुआ उस बड़े वनमें पहुँचा । हाँ उसने नवीन नगरीको देखा । वह विस्मित हो;