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सीताहरण ।
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जिसके धनुषकी टंकार ही इतनी असह्य है, उसके बाणोंको सहन करनेकी तो बात ही क्या है ? ऐसे सोचता हुआ म्लेच्छ राजा तत्काल ही रामके पास आया । शस्त्र छोड़, रथमेंसे उतर, दीनमुखी हो उसने रामको नमस्कार किया। लक्ष्मणने क्रोध पूर्वक उसकी ओर देखा । म्लेच्छाधिपति बोला:-" हे देव ! कौशांबीपुरमें 'वैश्वानर' नामा एक ब्राह्मण रहता है । उसके सवित्री नामा एक. पत्नी है । मैं उनका ‘रुद्रदेव ' नामा पुत्र हूँ। मैं जन्मसे ही, क्रूर कर्म करनेवाला, चोर और परस्त्रीलंपट हुआ हूँ। कोई ऐसा दुष्कर्म नहीं है। जिसको मुझ पापीने नहीं किया है। ___ एक वार खात पाड़ते,-सेंध लगाते- हुए, खातके. मुखमें ही मुझको राजपुरुषोंने पकड़ लिया। फिर राजाज्ञासे मुझको लोग शूली पर चढ़ानेके लिए ले चले। कसाईके घरमें जैसे बकरा दीन होकर रहता है, वैसे ही दीन होकर शूली-. के पास खड़े हुए मुझको एक श्रावकने देखा । उसको दया आई। अतः उसने दंडके रुपये भर कर मुझको छुड़ा दिया। ___ " अब फिर कभी चोरी मत करना । " ऐसा कह उस महात्माने मुझको रवाना कर दिया। उसके बाद मैंने उस देशको भी छोड़ दिया। ... फिरता फिरता मैं इस पल्लीमें आ पहुँचा और काकके. नामसे प्रसिद्ध हो पल्ली पतिके पदको पाया । यहाँ