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________________ २२० जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग । क्षीर वृक्षके ऊपर बैठे हुए मधुर शब्द किये । मगर उनको सुनकर रामको हर्ष या शोक कुछ भी नहीं हुआ। 'शकुनंचाशकुनं च गणयति हि दुर्बलाः ।' ( शकुन या अपशकुन की दुर्बल लोग ही परवाह किया करते हैं। ) आगे चलते हुए उन्होंने देखा कि-असंख्य, हाथी, रथ और घोड़ोंवाली म्लेच्छोंकी सेना देशोंका घात करनेके लिए जा रही है। उस सेनामें एक युवक सेनापति था । वह सीताको देखकर कामातुर हो गया । इस लिए उस स्वच्छंदा चारीने तत्काल ही अपने म्लेच्छ सिपाहियोंको आज्ञादी:" अरे ! जाओ और इन दोनों पथिकोंको भगाकर या मारकर उस सुंदरी स्त्रीको मेरे लिए ले आओ।" आज्ञा होते ही वे सेनापति सहित बाण और भाले आदि तीक्ष्ण आयुधोंसे रामके ऊपर प्रहार करनेके लिए दौड़ गये। उस समय लक्ष्मणने रामचंद्रसे कहा:-" आर्य ! कुत्तोंकी तरह मैं इन म्लेच्छोंको यहाँसे घेर कर-हाँक करनिकाल दूँ तबतक सीता सहित आप यहीं रहें । " इतना कह, धनुष चढ़ा, लक्ष्मणने उसकी टंकारकी । उस टंकार मानहाँसे, सिंहनादसे जैसे हाथी घबरा जाते हैं वैसे ही, म्लेच्छ घबरा गये।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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