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राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । २०३
सब समाचार दशरथ राजाको कहे । सुनकर राजाने भर-- तसे कहा:-" हे वत्स ! राम, लक्ष्मण तो वापिस नहीं आये इस लिए अब तू राज्य ग्रहणकर । मेरी दीक्षामें विघ्नः मत बन ।” __ भरतने उत्तर दिया:--" हे तात! मैं कदापि राज्य ग्रहण नहीं करूँगा । मैं स्वयं जाऊँगा और अपने ज्येष्ठ बंधुको, प्रसन्न करके लौटा लाऊँगा।"
उसी समय कैकेयी भी वहाँ आई और बोली:-"हे स्वामी ? आपने तो अपनी सत्य-प्रतिज्ञाके अनुसार भरतको राज्य दिया; परन्तु यह आपका विनयी पुत्र राज्यको ग्रहण नहीं करता है। इससे इसकी दूसरी माताओंको और. मुझे भी बहुत दुःख हो रहा है । यह सब विचार रहिता, मुझ पापिनी मूर्खाने ही किया है । अहो ! आप पुत्रवान होनेपर भी यह राज अभी राजा विहीन हो गया है । कौशल्या, सुमित्रा और सुप्रभाका दुःश्रव रुदन सुनकर मेरा हृदय भी फटा जाता है । हे नाथ ! मैं भरतके साथ जाकर वत्स राम और लक्ष्मणको वापिस लौटा लाऊँगी। इसलिए मुझको उनके पास जानेकी आज्ञा दीजिए।"
राजा दशरथने हर्षपूर्वक आज्ञा दी। इस लिए कैकेयी, भरत और मंत्रियोंको साथ लेकर, शीघ्रताके साथ रामके. पास जानेको चली । कैकेयी और भरत छ: दिन के अंदर