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राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । २०१ जब राजा और प्रजाजन रामके पीछे नगरके बाहिर निकल “गये, तब सारी अयोध्या शून्य-उजड़-दिखाई देने लगी। ___ रामने पिता और माताओंको विनयपूर्वक समझाकर, बड़ी कठिनतासे वापिस लौटाया। फिर बहुत स्नेहपूर्ण उचित कथन सहित पुरवासियोंको भी वापिस फेर, राम शीघ्रतासे लक्ष्मण और सीता सहित आगे चले। - मार्गमें प्रत्येक नगर और प्रत्येक ग्रामके लोग-वृद्ध पुरुष-रामसे अपने यहाँ ठहरनेकी प्रार्थना करते थे; परन्तु वे सबकी प्रार्थना अस्वीकार कर आगे बढ़े चले जाते थे। दशरथकी आज्ञासे रामको लानेके लिए सामंतोंका जाना।
उधर भरतने राज स्वीकार नहीं किया। प्रत्युत वह बन्धु-विरह सहनेमें असमर्थ हो, माता कैकेयी पर बहुत कुपित हुआ।
दीक्षा ग्रहण करनेके उत्सुक दशरथ राजाने रामको, राज्य ग्रहण करनेके लिए, लक्ष्मण सहित, वापिस लौटा लानेके लिए, सामंतों और मंत्रियोंको भेजा।
राम पश्चिमकी ओर जा रहे थे । सामंत शीघ्र ही उनके पास पहुँच गये । उन्होंने रामको दशरथकी, वापिस अयोध्यामें लौटने की, आज्ञा सुनाई। दीन बने हुए, उन मंत्रियोंने और सामंतोंने बहुत अनुनय विनय किया; परन्तु राम वापिस नहीं लौटे।