________________ 176 जैन रामायण चतुर्थ सर्ग। रामने थोड़ी ही बारमें करोड़ों म्लेच्छोंको बींध डाला जैसे कि शिकारी हरिणोंको बाँध देता है। यह राजा जनक तो बिचारा है; उसका सैन्य मच्छरके समान है; और उसकी सहायता करनेको आया हुआ सैन्य तो पहिलेहीसे दीन बन गया है। मगर. यह क्या ! आकाशको ढंकते हुए गरुड़की भाँति जो बाण आ रहे हैं, ये बाण किसके हैं ?' अतरंगादि म्लेच्छ राजा परस्पर बातें करते हुए रामकी ओर आये। उन्होंने विस्मय और कोपके साथ, पासमें आकर एक साथ राम पर अस्त्रदृष्टि करना प्रारंभ किया। दूरापाती-दूरसे आकर गिरता है वैसे-दृढ आघाती, और शीघ्रवेधी रामने लीला मात्रहीमें म्लेच्छोंको भन्म कर दिया; जैसे कि अष्टापद सिंहोंको कर देता है / क्षणवारमें कौओंकी भाँति सारे म्लेच्छ इधर उधर उधर दशोंदिशा-- ओंमें भाग गये / इससे राजा जनक और पुरवासी लोग स्वस्थ हुए। : रामका पराक्रम देखकर, जनक राजाने अपनी कन्या सीता, रामको देना निश्चय किया। रामके आनेसे जनकको दो लाभ हुए / कन्याके लिए योग्य वरकी प्राप्ति और मच्छोंका उपद्रव संहार। भामंडलका सीता पर आसक्त होना। नारदने लोगोंके मुखसे जानकीके रूपकी विशेष