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राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । १६९
धूमकेशकी स्त्री स्वाहाके गर्भसे पिंगल नामका पुत्र उत्पन्न हुआ। वह पिंगल चक्रध्वज राजाकी अतिसुंदरी नामा पुत्रीके साथ पढ़ता था। कुछ काल बीतनेके बाद दोनोंके परस्पर प्रेम होगया। इससे एकवार पिंगल छलसे अतिसुंदरीको, हरणकर विदग्ध नगर लेगया। कला, विज्ञान विहीन पिंगल घास लकड़ी वेचकर अपनी आजीविका चलाने लगा।
'निर्गुणस्योचितं ह्यदः ।। (निमुणीके लिए यही योग्य है । ) वहाँ अतिसुंदरीको राजपुत्र कुंडलमंडितने देखा । उन दोनोंके परस्पर अनुराग हो गया । राजषुत्र कुंडलमंडित उसको हर ले गया, और पिताके भयसे किसी दुर्गप्रदेशमें जा, वहाँ औपड़ा बना अति सुंदरीके साथ रहने लगा।
पिंगल अति सुंदरीके विरहसे 'उन्मत्त होकर, पृथ्वीपर भटकने लगा। भटकते हुए उसने एक आवगुप्त नामा आचार्यको देखा । उनसे धर्म सुनकर उसने दीक्षा ले श्री; परन्तु उसके हृदयसे अतिसुंदरीका स्नेह नहीं निकला। - कुंडलमंडित पल्लीमें रहता हुआ कुचेकी भाँति, छल 'करके दशरथ राजाकी भूमिको लूटने लगा । बालचंद्र नामा एक सामंतको दशरथ राजाने कुंडलमंडितको पकडनेकी आज्ञा दी। उसने इसको भुलावा देकर पकड़