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________________ जैन रामायण चतुर्थ सर्ग। आज्ञासे एक कमलश्री नामा आर्याके पास गई। कालयोगसे मरकर वे सौधर्म देवलोकमें देवता हुए। . 'व्रते ह्येकाहमात्रेऽपि न स्वर्गान्यतो गतिः।' (यदि एक दिन भी व्रतका आराधन किया हो, तो स्वर्गके सिवा दूसरी गति नहीं होती है।) . वसुभूति वहाँसे चवकर वैताब्य पर्वत पर रथनुपुर नगरमें, चंद्रगति नामा राजा हुआ। अनुकोशा भी वहाँसे चवकर उस विद्याधरपति चंद्रगतिकी पुष्पवती नामा पवित्र चरित्रवाली सती स्त्री हुई। ...सरसा किसी साध्वीको देख, दीक्षा ले, मृत्यु पा, ईशा म देवलोकमें देवी हुई। - सरसाके विरइसे पीडित अतिभूति मरकर संसारमैं भ्रमता हुआ एक हंसका शिशु हुआ। एकवार बाजने उस ईसके बच्चेको, भक्षण करनेके लिए पकड़ा। उसके पंजेसे छूटकर वह बच्चा एक मुनिके सामने जा गिरा। कंठगतपण होनेसे मुनिने उसको नमस्कार मंत्र दिया। उस मंत्रके प्रभावसे वह मरकर किन्नर जातिके व्यंतरोंमें दश हजार वकी आयुष्यवाला देवता हुआ।वहाँसे चवकर वह विदग्ध जापकै नगरमें प्रकाशसिंह राजाकी रानी प्रवराक्लीके गर्भसे जन्मा और कुण्डलमंडित नामसे प्रसिद्ध हुआ । . कयान भोगासक्तिमें मर, चिरकालतक संसाररूपी जगलमें भ्रमणकर, चंद्रपुरके राजा चंद्रध्वजके पुरोहित ६. .
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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