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________________ १७० जैन रामायण चतुर्थ सर्ग। लिया । और दशरथ राजाके पास ले गया। कुछ काल बाद दशरथने उसको वापिस छोड़ दिया । ___' कोपः शाम्यति महतां, दीने क्षीणे ह्यरावपि ।' (शत्रुके दीन हो जाने पर बड़े पुरुषोंका कोप शान्त हो जाता है।) ___ पश्चात कुंडलमंडित, अपने पिताका राज्य प्राप्त करनेके. लिए, पृथ्वी पर फिरने लगा । अन्यदा मुनिचंद्र नामा मुनिसे धर्म सुनकर वह श्रावक हो गया। राज्यकी इच्छासे परकर वह मिथिला नगरीमें जनक राजाकी स्त्री विदेहाके ममें पुत्र होकर आया । सरसा जो ईशान देवलोकमें देवी हुई थी, वह ईशान देवलोकसे चक्कर एक पुरोहितकी वेगवती नामा कन्या हुई । वह उस भवमें दीक्षा ले मरकर ब्रह्मदेव लोकमें गई। वहाँसे ववकर विदेहा रानीके गर्भ में कुंडलमंडितके जीवके साथ ही पुत्रीरूपमें आई। . __समय आनेपर विदेहाने पुत्र और कन्याको-युगल सन्तानको-जन्म दिया। उसी समयमें पिंगल मुनि मरकर सौधर्म कल्पमें देवता हुए। उन्होंने अवधिज्ञानसे अपना पूर्वभव देखा; उन्होंने अपने पूर्वभवके वैरी कुंडलमंडि-- को जनक राजाके घर पुत्ररूपसे उत्पन्न होते देखा । अतः पूर्वधवके वैरसे. रुष्ट होकर वे उसको हर ले गये।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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