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राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । १४५
रानीकी कूखसे जन्मे हुए ' कीर्तिधर' नामके पुत्रको राज्य सौंपकर ' क्षेमंकर' मुनिके पाससे दीक्षा ले ली । कीर्तिधर राजाका दीक्षा लेना ।
कीर्तिधर राजा अपनी रानीके साथ विषयसुख भोगने लगा । जैसे कि इन्द्र इन्द्राणी के साथ भोगता है । एकवार उसके जीमें दीक्षा लेनेका विचार आया । इस लिए मंत्रियोंने उसको कहा:
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जब तक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ है, तब तक व्रत लेना आपके लिए योग्य नहीं है । यदि आप पुत्र होनेके पहिले ही दीक्षा ले लेंगे, तो यह पृथ्वी अनाथ हो जायगी । इस लिए हे स्वामी ! पुत्रके उत्पन्न होने तक आप ठहरिए - दीक्षा न लीजिए । "
मंत्रियोंके निवारण करनेसे कीर्तिधर राजा दीक्षा न लेकर गृहवासही में रहा । कुछ काल बीतने के बाद उसकी सहदेवी रानीकी कूखसे ' सुकोशल' नामका पुत्र उत्पन्न हुआ । पुत्र - जन्म के समाचार सुनते ही 'मेरे पति दीक्षा ले लेंगे यह सोचकर, सहदेवीने उस बालकको छुपा दिया । गुप्त रहने पर भी राजाको पुत्र जन्मकी बात विदित हो गई । कहा है कि
' प्राप्तोदयं हि तरणी तिरोधातुं क ईश्वरः । ' ( उदित सूर्यको छिपानेका किसमें सामर्थ्य है ? ) फिर स्वार्थ कुशल कीर्तिधर राजाने, सुकोशलको गद्दी
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