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राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । १४३
rnmarrimummmmmmmmm उदय सुंदरने उत्तर दिया:--" बहुत अच्छा।" मोहसे उतरते हैं वैसे ही वज्रबाहु वाहनसे उत्तर पड़ा, और उदय सुंदर आदि सहित वसंतशैलपर चढ़ा । उसका, दीक्षा लेनेका, दृढ़ विचार देख, उदयसुंदर बोला:" हे स्वामो ! आप दीक्षा न लीजिए । मेरे हँसी करनेको धिक्कार है । मैं तो दीक्षाकी बात केवल दिल्लगीमें कर रहा था । दिल्लगीमें कही हुई बातको तोड़ देने में कोई दोष नहीं है । प्रायः विवाहके गीतोंकी भाँति दिल्लगीमें की हुई बातें भी सत्य नहीं हुआ करती हैं। हमारे कुलवालोंको आशा है कि, तुम आपत्तिों हमको सब तरहसे सहायता दोगे । दीक्षा लेकर हमारी उस आशाको नष्ट न करो। विवाह की निशानी रूपी मांगलिक कंकण भी अब तक तुम्हारे हाथमें बँधा हुआ है। विवाहसे प्राप्त होनेवाले भोगको तुम सहसा कैसे छोड़ देते हो ? हे स्वामी! तुम्हारे दीक्षा लेनेसे मेरी बहिन मनोरमा सांसारिक सुख स्वादसे ठगा जायगी-सुख स्वादसे वंचित रहेगी । और जब तृणकी भाँति तुम उसका त्याग कर दोगे, तब वह जीवित कैसे रह सकेगी ?" ___ कुमार वज्रबाहुने कहा:-" हे उदयसुंदर ! मानव जन्म रूपी वृक्षका सुंदर फल चरित्र ही है । स्वाति नक्षत्रका जल जैसे सीपमें पड़कर मोतीका रूप धारण करता है वैसे ही, तुम्हारी हँसीके वचन भी मेरे लिए परमार्थ रूप