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सर्ग ४ था ।
राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास | वज्रबाहुका दीक्षा ग्रहण करना ।
मिथिला नगरीमें हरिवंशका ' वासवकेतु' नामक राजा था। उसकी रानीका नाम 'विपुला था। उनके पूर्ण लक्ष्मीवान और प्रजाका जनकके तुल्य जनक नामा एक पुत्र हुआ । अनुक्रम से वह राजा बना ।
उसी समय में अयोध्या नगरी में ' श्री ऋषभदेव ' भगवान के राज्य के बाद इक्ष्वाकुवंशके अंतर्गत सूर्यवंशमें कितने ही राजा हो गये। उनमेंसे कितने ही मोक्षमें गये और कितने ही स्वर्ग में गये । उसी वंश में जब बीसवें तीर्थकरके तीर्थकी प्रवृत्ति हुई उस समय ' विजय ' नामक राजा हुआ । उसके ' हेमचूला ' नामकी एक प्रिया थी । उनके ' वज्रबाहु ' और ' पुरंदर, नामके दो पुत्र हुए ।
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उसी कालमें नागपुरमें 'इभवाहन ' नामका राजा था । उसकी राणी चूडामणिके गर्भ से 'मनोरमा' नामकी एक कन्या हुई थी ।
मनोरमा युवती हुई तब वज्रबाहुने बड़े उत्साह और उत्सवके साथ उसका पाणिग्रहण किया; जैसे कि रोहिणीका चंद्र करता है ।