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जैन रामायण तृतीय सर्ग।
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....प्रणिपातांतः प्रकोपो हि महात्मनाम् ।' ( महात्माओंका कोप प्रणिपात पर्यंत ही रहता है।)
अपनी आँखोंसे जिस पुरुषका पराक्रम देखा है, ऐसा जवाई मिलना कठिन समझ, वरुणने अपनी ' सत्यवती' नामकी कन्या हनुमानको ब्याह दी।
रावण वहाँसे लंकामें आया। उसने भी प्रसन्नतापूर्वक, अपनी बहिन चंद्रनखा (सूर्पनखा) की पुत्री 'अनंगकुसुमा' हनुमानको दे दी । सुग्रीवने 'पद्मरागा,' नलने 'हरिमालिनी । और दूसरोंने भी अपनी हजारों कन्याएँ हनुमानको दी। रावणद्वारा हर्षोद्वेगसे दृढ़-आलिंगके साथ विदा किया हुआ पराक्रमी हनुमान हनुपुर गया । दूसरे वानरपति-सुग्रीव-आदि विद्याधर भी हर्ष सहित अपने अपने नगरोंको गये।