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________________ हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन। १२९ ww राशीमें है। मीन लग्नका उदय है और ब्रह्मयोग है इस लिए सब तरहसे शुभ है। __ तत्पश्चात् प्रतिसूर्य अपनी भानजीको उसके पुत्र और सखि सहित अपने, उत्तम विमानमें बिठाकर निज नगरकी ओर ले चला । विमान चला जा रहा था । विमानकी छतमें एक रत्नमय झूमका लटक रहा था। उसको लेनेकी इच्छासे बालक माताकी गोदमेंसे उछला । विमानमेंसे निकलकर वह नीचे पर्वत पर जागिरा, मानो आकाशसे वज्र गिरा है । उसके आघातसे उसपर्वतका चुरा हो गया । पुत्रके गिरनेसे अंजना हाहाकार कर रोने लगी और छाती पीटने लगी। रुदनके प्रतिरवसे-शब्दसे: पर्वतकी गुफाओंसे जो शब्द निकलते थे, उनसे ऐसा मालूम होता था कि, अंजनाके साथ गुफाएँ भी रो रही हैं। प्रति. सूर्य तत्काल ही उसके पीछे गया और उस अक्षतवीर्यको, उठा कर नाश पाये हुए धनकी भाँति, उसने वापिस अंजनाको सौंप दिया। फिर मनके समान वेगवाले विमान द्वारा प्रतिसूर्य आनन्दोल्लास-उत्सव-पूरित अपने हनुपुर नगरमें पहुँच गया। अंजना अंतःपुरमें पहुँचाई गई । सब रानियोंने अंजनाकी कुल देवीकी भाँति पूजा की। जन्मते ही बालक हनुपुर ग्राममें आया था, इस लिए अंजनाके मामाने उसका नाम ' हनुमान । रक्खा । विमा
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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