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जैन रामायण तृतीय सर्ग।
नमेंसे गिरने पर उसके शरीरके आघातसे पर्वतका चुरा होगया, इस लिए उसका दूसरा नाम श्रीशैल हुआ। ___ मानस सरोवरके कमलवनमें राजहंसका शिशु जिस भाँति वृद्धिंगत होता है उसी भाँति, हनुमान सुख पूर्वक क्रीडा करता हुआ बड़ा होने लगा। अंजना यह विचार करती हुई शल्य रहित व्यक्तिकी भाँति अपने दिन बिताने लगी कि-केतुमतीने जो दोष लगाया है, उसकी किस भाँति निवृत्ति हो ।
अंजनाकी शोधके लिए पवनंजयका प्रयाण। उधर रावणकी मदद पर गये हुए पवनंजयने वरुणके साथ संधि करके खर दूषणको छुड़ाया; और रावणको संतुष्ट किया। रावण सपरिवार लंका गया। पवनंजय उसकी सम्मति ले अपने नगरमें आया। . ___ वह माता पिताको प्रणाम कर अंजनाके महलमें गया। वहाँ जाकर उसने महलको, ज्योत्स्नाहीन चंद्रमाकी भाँति, अंजना विहीन निस्तेज-शून्य देखा । वह दुखी हुआ। उसने वहाँ एक दासीसे पूछा:-" अंजनके समान आँखोंको सुखी करनेवाली मेरी अंजना
उसने उत्तर दियाः-" आपने रण-यात्रा की। पीछेसे कुछ दिन बाद अंजनाको गर्भवती देख, गर्भको दृषित समझं, केतुमतीने उसको घरसे निकाल दिया। उन्हींकी