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हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन।
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पिताके जीते हुए तेरा कुछ दोष नहीं है । हे प्राणनाथ ! एक आपके दूर होनेसे सबलोग मेरे शत्रु हो गये । हे सर्वथा पति विहीना ! तू एक दिन भी जीवित मत रहना; जैसे कि मैं मंद भाग्य-शिरोमाण अब तक जीवित हूँ।" . __ इस भाँति विलाप करती हुई अंजनाको उसकी सखीने समझाया। वह शान्त हुई। फिर दोनों वहाँसे आगे चलीं। __ चलतेहुए गुफामें उन्होंने एक 'अमितगति' नामके मुनिको ध्यान करते देखा। उन 'चारण श्रमण ' मुनिको नमस्कार करके विनय पूर्वक दोनों उनके पास बैठ गई। मुनिने भी ध्यान समाप्त किया और अपना दाहिना हाथ ऊँचाकर मनोरथ पूर्ण और कल्याण कर्ता आनंद देनेमें धाराके समान 'धर्मलाभ ' रूपी-आशीर्वाद दिया।
वसंत तिलकाने भक्तिसे फिर नमस्कारकर प्रारंभसे अन्त तक अंजनाका सारा दुःख मुनिसे कह सुनाया और पूछा कि-" अंजनाके गर्भ में कौन है ? किस कमके उदयसे अंजना ऐसी स्थितिमें पहुंची है ?"
मुनिने उत्तर दिया:--" इस भरतक्षेत्रमें ' मंदर नामका नगर हे । उसमें प्रियनंदी नामका एक वणिक. रहता था। उसकी 'जया' नामा स्वीकी कूखसे चंद्रके समान कलाओंका निधि-भंडार-और दम (इन्द्रिय दमन) प्रिय, 'दमयंत ' नामका एक पुत्र हुआ । एकवार वह उद्यानमें क्रीडा करने गया । वहाँ उसने स्वाध्याय-ध्यानमें