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________________ हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन। ११९, हैं । हे स्वच्छंदचारिणी! तू आज ही मेरे घरसे निकल कर अपने बापके यहाँ चली जा । यहाँ अब खड़ी भी मत रह । मेरा घर तेरे जैसी स्त्रियोंके रहने योग्य नहीं है। " - इस प्रकारसे उसका तिरस्कार कर, उस राक्षसी स्वभावा निर्दया केतुमतीने अंजनाको पिताके घर छोड़ आनेकी नौकरोंको आज्ञा दी। नौकर अंजनाको और वसंततिलकाको नौकांमें बिठाकर माहेंद्र नगरके पास ले गये। उन्होंने उनको नौकासे उतारा नेत्रोंमें जलभर अंजनाको माताकी तरह प्रणाम किया और उससे क्षमा माँगी । 'स्वामिवत्स्वाम्यपत्येऽपि सेवकाः समवृत्तयः।' (उत्तम सेवक स्वामीके परिवार पर भी स्वामीकी भाँति ही वृत्ति रखते हैं।) फिर वे उन्हें वहीं छोड़कर निज नगरको लौट गये। पिताके घरसे भी अंजनाका तिरस्कार। उस समय सूर्य अस्त हो गया; ऐसा जान पड़ता था, मानो. अंजनाका दुःख न देख सकनेहीसे सूर्य चला गया है। 'सन्तः सतां न विपदं विलोकयितुमीश्वराः।' ( सत्पुरुष कभी सज्जनकी विपत्तिको नहीं देख सकते हैं।)
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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