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१२० जैन रामायण तृतीय सर्ग ।
उल्लुओंका घुरघुराहट होने लगा; शृगाल फेत्कार करने लगे; सिंह गर्जने लगे; शिकारी जानवर-दरिंदे-अनेक प्रकारके शब्द बोलने लगे; पिंगलं राक्षसोंके संगीतकी भाँति कोलाहल करने लगे। इन्हीं सबके बीचमें-वहीं रहकर, मानो वह बहरी है, किसीके शब्द सुनती ही नहीं है ऐसी स्थितिमें-अंजनाने वसंततिलका सहित सारी राव जागते हुए बिताई। ___ सवेरा होते ही वह दीन अबला, लज्जासे संकुचित होती हुई, भिक्षुककी भाँति परिवार रहित, धीरे धीरे पिताके दरवाजे पर गई । उसको अचानक वैसी स्थितिमें आई हुई देख, प्रतिहारी-चौकीदार-भ्रममें पड़ा । फिर उसने वसंततिलकाके कहनेसे सारी बातें जाकर राजासे निवेदन की । __ सुनकर राजाका मुख नम्र और काला हो गया । वह विचारचे लगा-“कर्मके विपाककी तरह स्त्रियोंका चरित्र भी अचिंत्य है । कुलटा अंजना मेरे कुलको कलंकित करनेहीके लिए मेरे घर आई है । परन्तु उसका लेश भीवेत वस्त्रकी भाँति घरको दूषित करता है।" , राजा इस तरह सोच रहा था, इतनेहीमें उसका नीतिशान पुत्र प्रसन्नकीर्ति' अप्रसन्न होकर कहने लगा:
स दुष्टाको इसी समय यहाँसे निकाल दो। उस दुष्टाने १ एक प्रकारका साँप ।