________________
११८ जैन रामायण तृतीय सर्ग। गर्भवती अंजनाका, सासू केतुमतीके द्वारा, तिरस्कार ।।
अंजनासुंदरीके उसी दिन गर्भ रह गया । इससे उसके सारे अवयव विशेष सुन्दर हुए; विशेष शोभा देने लगे । गालोंकी शोभा पांडु वर्णकी होगई; स्तनोंके मुख श्याम होगये; गति अत्यंत मंद होगई, और नेत्र विशेष विशाल और उज्ज्वल हो गये। इनके अतिरिक्त गर्भके दूसरे लक्षण भी उसके शरीरपर स्पष्टतया दिखाई देने लगे। ___ यह देखकर उसकी सासू ' केतुमती' तिरस्कारपूर्वक बोली:-" रे पापिनी ! दोनों कुलोंको कलंकित करनेवाला तूने यह क्या काम किया ? पति विदेशमें होते हुए भी तू गर्भिणी कैसे होगई ? मेरा पुत्र तुझसे घृणा करता था, तब मैं समझती थी कि वह अज्ञानी है, इसी लिए. तुझको दूषित गिनता है; परंतु मुझे आज तक यह मालूम नहीं था कि, तू व्यभिचारिणी है।" __ सास्कृत तिरस्कारसे दुखी हो; आँखोंमें आँसू भर, अंजनाने पतिसमागमकी साक्षीरूप मुद्रिका अपनी सासूको दिखाई । उसको देखने पर भी, लज्जावनतमुखा अंज-- नाको उसकी सासूने फिरसे घृणापूर्वक कहा:-" अरे दुष्टा ! तेरे पतिके साथ-जो तेरा कभी नाम भी नहीं लेता था-तेरा समागम कैसे हो सकता है. १ इस लिए मुद्रिका दिखाकर, हमको किस लिए धोखा देती है. व्यभिचारिणी स्त्रियाँ ठगनेके ऐसे ऐसे कई मार्ग जानती