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हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन।
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होगी, तो अच्छा नहीं होगा। हे सुंदरी ! अब कभी मनमें खेद मत करना । मैं रावणका कार्य करके वापिस आऊँ तबतक सखियोंके साथ सुखसे काल बिताना।" ___ अंजना बोली:-" आपके समान बलवान वीरके लिए तो वह कार्य सिद्ध ही है। मगर यदि आप मुझको जीवित देखनेकी इच्छा रखते हैं तो कार्यसाधन करके शीघ्र ही लौट आइए । एक विनती और है । आजमें ऋतुस्नाता हूँ इसलिए यदि मुझे गर्भ रह जायगा तो आपकी अनुपस्थितिके कारण दुर्जन लोग मेरी निंदा करेंगे।"
पवनंजयने कहा:-" हे मानिनी ! मैं शीघ्र ही लौट कर वापिस आऊँगा। मेरे आनेसे कोई नीच मनुष्य तेरी निंदा नहीं कर सकेगा। तो भी मेरे समागमको सूचित करनेवाली मेरे नामकी यह अंकित मुद्रा ले। यदि समय पड़े तो यह मुद्रिका बता देना।" __ इतना कह मुद्रिका दे, पवनंजय प्रहसित सहित वहाँसे उड़कर अपनी सेनामें गया । वहाँसे देवोंकी भाँति,सेनाके साथ, वह आकाश मार्गसे लंकामें पहुँचा। लंकामें जाकर उसने रावणको प्रणाम किया। तरुण सूर्यकी भाँति कांतिसे प्रकाशित रावण और पवनंजय अपनी अपनी सेना लेकर वरुणके साथ युद्ध करनेको पातालमें गये।
१ रजस्वला होनेके बाद स्नानकी हुई।