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हनुमानकी उत्पत्ति और वरुणका साधन। १११ चंद्रमाकी तरह कुश हो रहा है। सूखे हुए केशोंसे उसका लिलाट ढका हुआ है। शिथिल बनी हुई भुजलता उसके नितंब भागपर लटक रही है, ताँबूलके रंग विना उसके अधरपल्लव पीले पड़े हुए हैं; अश्रुजलसे उसका मुख भीग रहा है और उसकी आँखोंमें अंजनका नाम भी नहीं है। __ अंजनाको देखकर उसने मन ही मन कहा:-" अहो ! यह दुष्टबुद्धिवाली कैसी निर्लज्ज और निर्भीक है ! मैंने तो इसके दुष्ट मनको पहिलेहीसे जानलिया था, तो भी मातापिताकी आज्ञा उल्लंघनके भयसे मुझको इसके साथ ब्याह करना पड़ा था ।"
पवनंजय इस तरह सोच रहा था, उसी समय अंजना उसके पैरों पड़, हाथ जोड़, बोली:--" हे स्वामी! आप सबसे मिले, सबकी सँभाल ली मगर मुझसे तो आप एक शब्द भी नहीं बोले । नाथ ! मेरी प्रार्थना सुनिए मुझे इस तरह भूल न जाइए। आपका मार्ग सुखकर हो । अपना कार्य सफल करके पुनः शीघ्र पधारिए ।" ।
शुद्ध चरित्रवाली दीन बनी हुई सती अबलाकी, उसकी प्रार्थनाकी; कुछ परवाह न कर पवनंजय विजयके लिए चला गया।
पवनंजयका अंजनाके महलमें आना। पतिकृत अवज्ञासे, पति वियोगसे, पीड़ित होकर, वह