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जैन रामायण द्वितीय सर्ग ।
इस लिए भक्ति दिखाओ । यदि भक्ति बतानेकी इच्छा न हो, तो अपनी शक्ति प्रदर्शित करो। यदि भक्ति और शक्ति दोनोंसे रहित होओगे तो ऐसे ही नष्ट हो जाओगे।" ___ इन्द्रने उत्तर दिया:-" दीन राजाओंने उसकी पूजा की इस लिए रावण मत्त हो गया है । इसी लिए वह मेरे पाससे भी पूजा कराने की इच्छा रखता है। आज तक तो जैसे तैसे सुखसे रावणके दिन निकल गये, मगर अब उसका कालके समान इन्द्रसे पाला पड़ा है । अतः अपने स्वामीसे जाकर कह कि, वह भक्ति या शक्ति बतावे । यदि वह शक्ति या भक्तिसे रहित होगा, तो तत्काल ही उसका नाश हो जायगा।"
दूतने आकर रावणको सब समाचार सुना दिये । रावणने क्रुद्ध होकर, रण दुंदुभि बजवाया । इन्द्र भी तत्काल ही तैयार हो, सेना लेकर युद्ध के लिए नगरसे बाहिर निकला । कहा है कि
___ वीरा हि न सहन्तेऽन्यवीराहंकाराडंबरम् ।' ___(वीरलोग दूसरे वीरोंके अहंकारको या आडंबरको सहन
नहीं कर सकते हैं ।) ___ युद्ध प्रारंभ हो गया । सामंतोंसे सामंत, सैनिकोंसे सैनिक और सेनापतियोंसे सेनापति आपसमें भिड़ गये । शस्त्रोंकी वर्षा करती हुई दोनों सेनाओंके बीचमें संवर्त और पुष्करावर्त मेघके समान संघर्षण होने लगा। दोनों सेना