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________________ रावणका दिग्विजय । wwwwwwwannawuvwwww wwwvo Shahcs है। दूसरे मैं परस्त्रीको अपनी माँ बहिनके समान समझता हूँ। तू कासध्वजकी पुत्री है; सुंदरीके गर्भसे तेरा जन्म हुआ है। इस लिए तू वही कार्य कर जिससे दोनों शुद्ध कुलोंमें किसी प्रकारका कलंक न लगे।" इतना कहकर रावणने उपरंभाको नलकूबरके आधीनकर दिया। रूस कर पिताके घर गई हुई स्त्री जैसे निर्दोष वापिस सुसरालमें आती है, वैसे ही उपरंभा वापिस आई । राजा नलकूबरने रावणका बहुत बड़ा सत्कार किया । - रावण और इन्द्रका युद्ध । रावण अपनी सेना सहित रथनुपुर नगर गया। रावणको आया सुन, महा बुद्धिमान सहस्रार राजांने अपने पुत्र इन्द्रसे स्नेहपूर्वक कहा:--" हे वत्स ! तेरे समान बड़े पराक्रमी पुत्रने जन्म लेकर, अपने वंशको उन्नतिके सर्वोत्कृष्ट शिखरपर पहुँचाया है और दूसरे उन्नत बने हुए वंशोंको न्यून बनाया है। यह बात तूने अपने ही पराक्रमसे की है, मगर अब नीतिको भी स्थान देना चाहिए । एकान्त पराक्रम किसी समय विपत्ति-दाता भी हो जाता है। अष्टापद आदि बलिष्ठ प्राणी, एकान्त पराक्रमके गर्वसे ही नष्ट हो जाते हैं । यह पृथ्वी सदैव एकके ऊपर दूसरा बलवान पैदा किया करती है । इस लिए किसीको यह गर्व नहीं करना चाहिए कि- मैं ही सर्वोत्कृष्ट बलवान हूँ।' १ पहिले सहस्रार राजाके दीक्षा लेनेकी बात आगई है; परन्तु उस बातको इस युद्धके बादकी समझना चाहिए ।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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