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________________ रावणका दिग्विजय। ८२ vvvvvvvvvw wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww सुमित्र और प्रभवका वृत्तान्त। पवनके समान बलवान और पराक्रमी रावण, मरुत राजाके यज्ञका भंग करके वहाँसे मथुरा नगरीमें गया । मथुराका राजा 'हरिवाहन,' अपने त्रिशूलधारी पुत्र 'मधुको' साथ लेकर रावणके सामने आया । भक्ति पूर्वक सामने आये हुए हरिवाहनके साथ, कुछ देरतक रावण बातें करता रहा। फिर उसने पूछा:--" तुम्हारे पुत्रको यह त्रिशूलका आयुध कैसे मिला?" हरिवाहनने भ्रकुटिद्वारा मधुको आज्ञा दी । मधुने मधुरतासे इस तरह कहना प्रारंभ कियाः-" यह त्रिशूल मुझको मेरे पूर्वजन्मके मित्र चमरेंद्रने दिया है । त्रिशूल देते वक्त उसने कहा था कि-" धातकीखंड द्वीपके क्षेत्रमें 'शतद्वार' नामक नगर है । उसमें 'सुमित्र' नामका राजपुत्र और 'प्रभव' नामक कुलपुत्र थे । ये दोनों वसंत और मदनकी तरह मित्र थे । दोनों, बाल्यावस्थामें एक ही गुरुके पास, कलाओंका अभ्यास करते थे और अश्विनी कुमारकी भाँति आवियुक्ततासे-एकही साथ रहकरकेक्रीडा करते थे। ___ जब सुमित्र जवान होकर अपनी राज-गद्दीपर बैठा, तब उसने प्रभवको भी अपने ही समान समृद्धिशाली बना दिया। १ अश्विनी नामकी सूर्यकी स्त्रीसे दो जुड़े हुए पुत्र उत्पन्न हुए थे; वे भिन्न नहीं हो सकते थे ।
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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