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जैन रामायण द्वितीय सर्ग ।
रक्खा गया। एक बार कूर्मि जब कहीं गई हुई थी, तब पीछेसे जृंभक देवता उसको, हरण कर ले गये । कूर्मिने पुत्रशोक से व्याकुल होकर ' इंदुमाला ' नामकी आर्जिकाके पाससे दीक्षा लेली ।
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जंभक देवताओंने उस लड़केका पालन पोषण किया; उसको पढ़ाया लिखाया; शास्त्रोंमें प्रवीण बनाया; और अन्तमें उसको आकाशगामिनी विद्या सिखाई ।
श्रावकके व्रतपालता हुआ, वह युवावस्थाको प्राप्त हुआ । मस्तक पर शिखा - जटा - रखानेसे न तो वह यति ही समझा जाता है और न श्रावक ही । कलह - झगड़ा देखनेका उसको बड़ा चाव है; गीत और नृत्यका वह बहुत शौकीन है । वह कामदेवकी चेष्टासे सदा दूर रहता है । वह अति वाचाल और अति वत्सल है । वीर और कामुक पुरुषोंके बीच में वह संधि और विग्रह कराता है । हाथमें छत्री - कृषि - कमंडल और अक्षमाला रखता है । पैरोंमें खड़ाऊ पहनता है । देवताओंने उसको पाल पोसकर बड़ा किया इस लिए, वह पृथ्वी में देवर्षिके नाम से प्रख्यात है। वह ब्रह्मचारी है और प्रायः स्वेच्छा बिहारी है । " नारका वृत्तांत सुनकर मरुत राजाने अज्ञानतासे, यज्ञ करानेका जो अपराध किया था, उसकी क्षमा माँगी । फिर उसने अपनी कन्या ' कनकप्रभा' रावणके भेट की। रावणने उस कन्याका पाणिग्रहण किया ।
१ एक प्रकारका दर्भासन ।