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________________ रावणका दिग्विजय । रावणने नारदकी बात स्वीकार कर, सत्कार पूर्वक उसको रवाना कर दिया । मरुत राजाको भी उसने क्षमा कर दिया। नारदका वृत्तान्त। मरुत रावणको नमस्कार करके बोला:--" हे स्वामी, कृपाका सागर यह कौन पुरुष था कि, जिसने आकर, आपके द्वारा, हमको पाप करनेसे बचाया ?” मरुतके वचन सुनकर, रावणने इस प्रकारसे नारदकी उत्पत्ति कहना प्रारंभ किया। ___“ब्रह्मरुचि नामका एक ब्राम्हण था । वह तापस हो गया । तापस अवस्था भी उसकी स्त्रीके गर्भ रह गया। एकवार कुछ साधु उसके घर गये । उनमेंसे एक साधुने कहा:-"संसारके भयसे तुमने घर छोड़ा यह तो बहुत अच्छा कार्य किया; परन्तु जब वनवासमें भी स्त्रीको साथमें रखते हो और विषयमें लीन रहते हो; तब फिर गृहवाससे यह वनवास कैसे अच्छा हो सकता है ?" उपदेश लग गया । ब्रह्मरुचिने जिन धर्म स्वीकार किया; वह जिन धर्मका साधु बना । कूर्मि-ब्रह्मरुचिकी स्त्री-भी परम श्राविका बन गई और मिथ्यात्वका परित्याग कर वहीं रहने लगी। समयपर उसने एक पुत्रको जन्म दिया । उत्पन्न होते समय वह नहीं रोया, इस लिए उसका नाम 'नारद'
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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