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________________ ८४ जन प्रतिमाविज्ञान क्र० तिलोय० प्रतिष्ठामार० अभि०चि० अपराजित० तीर्थकर १६. मानसी महामानमी निर्वाणी' मानसी शान्ति १७. महामानमी जयदेवी बला महामानमी कुन्थु १८. जया तारावती धारिणी जया पर १६. विजया अपराजिता धरणप्रिया' विजया मल्लि २०. अपराजिता बहुरूपिणी नग्दत्ता' अपराजिता मुनिसुव्रत २१. वहुरूपिणी चामुण्डा गांधारी बहुरूपा नमि २२. कृष्मांडी प्राम्रा' अम्बिका' अम्बिका नेमि २३, पदमा पद्मावती पद्मावती पद्मावती पाव २४. मिद्धायिणी मिद्धायिका सिद्धायिका सिद्धायिका महावीर ___ उपर्युक्त सूची मे प्रतीत होता है कि निलोयपण्णत्नी की सूची में कोई एक नाम छुट जाने से परवा-काल में उममें नया नाम जोड़ा गया है. जिसमें मूची में विसंगतता हो गयी । मूल ग्रन्थ में मोलसा अगांतमदी उल्लेख होने पर भी अनंतमती का क्रमांक पन्द्रहवां ही पाता है, सोलहवां नहो । इससे स्पष्ट है कि सूची में भूल है । प्रतिष्ठासारसंग्रह में वसुनन्दि ने इन शामनदेवताग्रो में से प्रत्येक के अपर नामों से भी मंत्रपद कहे है । १. ग्राचारदिनकर म निर्वाणा कहा गया है । २. पाशाधर और नेमिचन्द्र ने जया कहा है । ३. प्रवचनसारोद्धार में वैगेटी, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, निर्वाण कलिका प्रादि मे वरोदया। ४. प्राचारदिनकर में अच्छु प्तिका-नदत्ता । ५. अपर नाम कुसुममालिनी । ६. अपर नाम कूप्माण्डी बताया गया है । ७. प्रवचनसारोद्धार मे अम्बा, त्रिषष्टिशलाकापुरषचरित में कूप्माण्डी प्रौर निर्वाणकलिका में कूष्माण्डी । शुभचन्द्र ने अम्बा के प्राम्रकू माण्डी, अंबिला, तारा, गोरी और वजा नाम भी बताये हैं । ८. प्रपर नाम सिद्धायिनी मिलता है। ६. प्रवचनसारोदार में सिद्धा नाम है ।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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