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जैन प्रतिमा विज्ञान
प्रायुत्र वीजपूर और सर्प बताते है जबकि आचारदिनकर और ग्रमाव्य में सर्प के स्थान पर गदा का उल्लेख है |
मातंग
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अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी का यक्ष मातंग है । दिगम्बर उसे मुद्ग ( मृग) वर्ण और श्वेताम्बर श्याम वर्ण कहते है । उसका वाहन गज और भुजाएं दी है | मुख एक है पर दिगम्बरों के अनुसार यह यक्ष अपने मस्तक पर धर्म चक्र धारण किये होता है । श्रायुधविचार में, वसुनन्दि ने वरद और मातुलिंग ये दो प्रायुध बताये है । आगाधर और नेमिचन्द्र ने उनमें से दायें हाथ का श्रायुध वरद और बायें का फल (मातुलिंग ) कहा है । अपराजित पृच्छा ने भी यही विधान किया है । श्वताम्बर परम्परा में दायें हाथ मे नकुल और बाये हाथ में बीजपूर माना गया है" जिसका अनुमरण रूपमण्डन ने किया है ।
चतुविशति यक्षियां
चौबीस शासनदेवियां या यक्षियों की सूचिया तिलोय पण्णत्ती, प्रवचनसारोद्धार, ग्रभिधानचिन्तामणि, प्रतिष्ठासारसंग्रह, प्रतिष्ठासारोद्धार, प्रतिष्ठातिलक, निर्वाणकलिका, आदि आदि जैन ग्रन्थों तथा अन्य वास्तुशास्त्रीय ग्रन्थों में मिलती हैं। यहां पूर्व की भांति तिलोयपण्णनी, प्रतिष्ठासारसंग्रह, अभिधान चिन्तामणि और अपराजित पृच्छा मे वर्णित सूचिया उदधृत की जा रही है.
प्रतिष्ठासारसंग्रह
तीर्थकर
चक्रेश्वरी
ऋषभ
रोहिणी
ग्रजित
क्रमाक तिलोयप०
१. चक्रेश्वरी
२.
रोहिणी
१ त्रिपाष्टशलाका पुरुषचार
निवाणकलिका, पन्ना ३७ ।
आचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७६ । अमरकाव्य, ६२-६३
अप० पृ०
अभि० चि० चक्रेश्वरो चक्रेश्वरी प्रजितवला रोहिणी
२.
३. प्रतिष्ठासारसंग्रह, ५ ६५-६६
८. प्रतिष्ठासारोद्धार, ३ १५२; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३३८ ।
५.
आचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७६; निर्वाणकलिका, पन्ना ३७; अमरकाव्य, २४७
६.
७.
८.
अपर नाम चक्रा भी बताया है ।
प्रवचनसारोद्धार में चक्रेश्वरी किन्तु त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, निर्वाणकलिका आदि में प्रप्रतिचका नाम मिलता है ।
प्रवचनसारोद्धार और निर्वाणकलिका में प्रजिता । वसुनन्दि ने भी अपर नाम प्रजिता बताया है ।