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________________ शासन यक्ष ८१ श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार यक्ष के दाय हाथों मे मातुलिंग, परशु पौर चक्र तथा बांये हाथों में नकुल, शूल और शक्ति ये आयुध हैं।' जैन ग्रन्यों में सर्वाल या सर्वानुभूति नामक एक यक्ष का उल्लेख बहुन मिलता है। वह गोमेध से अभिन्न हो सकता है । इस संबंध में प्रागे विचार किया जावेगा। धरण पार्श्व तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के यक्ष को दिगम्बर परम्परा वाले धरण या धरणेन्द्र और श्वेताम्बर परम्परा वाले पार्श्व यक्ष कहते है। प्रवचनसारोद्धार में इस यक्ष का नाम वामन बताया गया है। भैरवपद्मावतीकल्प (जो दिगम्बरों में भी मान्य है) मे पार्श्वनाथ के यक्ष को पार्श्व यक्ष कहा गया है। उम ग्रन्थ में इस यक्ष को न्यग्रोधमूलवामी, श्यामांग और त्रिनयन बताया गया है । तिलोयपानी में भी पार्श्व नामक यक्ष का उल्लेख है।' धरण और पार्श्व दोनों ही रूप में इस यक्ष का वर्ण श्याम, वाहन कर्म और भुजाएं चार है ।' श्वेताम्बर परम्पग में पाश्वंयक्ष का गजमुख माना गया है । रूपमण्डन में भी उमा प्रकार उल्लेख है। अपराजित पृच्छा में वह सर्परूप है जो दिगम्बरोके अनुकूल है। दिगम्बरो के अनुमार धरण के मौलि में वासुकि (मर्प) का चिह्न होता है । प्राचारदिनकर तथा अन्य श्वेताम्बर ग्रन्थों में भी पार्श्वयक्ष क मस्तक पर मपंफग का छत्र बताया है। अपगजितपृच्छा में पार्श्व यक्ष के पायुध धनुप, बाण,भृण्डि, मुद्गर, फल और वरद कहे गये हैं दिगम्बरो के अनुमार धरण के उपरले दानों हाथों में वासुकि (मर्प), निचला दाया हाथ वरदमुद्रा में और निचले बाये हाथ मे नागपाश होता है । श्वेताम्बरी के अनुमार पावं यक्ष के बायें हाथों में नकल पोर मर्प ताते है किन्तु दायें हाथों के प्रायुधो के संबंध में उन में किञ्चित् मतभेद है। हेमचन्द्र और निर्वाणकलिकाकार दायें हाथों के १. निर्वाणकलिका आदि । २. भैरवपद्मावतीकल्प, ३/३८ ३. तिलोयपण्णत्ती, ४, ६३५ ४. अपराजितपृच्छा मे छह किन्तु रूपमण्डन में चार । ५. प्रतिष्ठासारोद्धार, ६/१५१, प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ, ३३८ ।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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