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जन प्रतिमाविज्ञान
ने चतुर्मुम्ब नाम में इसका वर्णन किया है । श्वेताम्बगे ने षण्मुख का वर्ण श्वेत बताया है किन्तु आशाधर चतुर्मुख को हरित वर्ण कहने है। यक्ष का वाहन मयूर है पीर भुजाए द्वादश ।' मुग्यो की योजना में वमुनन्दि और प्रागाधर ने चतुर्मुख पर नेमिचन्द्र ने पण्मुग्व बनाया है अर्थात् जिम ग्रन्थकार ने यक्ष का जो नाम बताया तदनुसार मुखयो ना भी बतायो । प्राचारदिनकर मे द्वादशाक्ष होने के उल्लेग में वह षण्मुख ज्ञात होता है। वमुनन्दि ने प्रायुधों का विवरण नदी दिया। प्रागाधर और नेमिचन्द्र उपरले पाठ हाथा में परशु बताते है और शेष चार हाया मे क्रमश. तलवार, प्रक्षमाला, खेटक और दण्ड ।' श्वेताम्बर परम्परा में दाये हाथा के आयुध फल, चक्र, बाण, खड्ग, पाय और प्रक्षसूत्र तथा बायें हाथो के आयुध नकुल, चक्र, धनुष, ढाल, अंकुश और अभय बताये गये हैं ।' अपराजितपृच्छा म वज्र, धनुष, वाण, फल आर वग्द इन पाच प्रायुधो का · मोल्लेख किया गया है । पाताल
चौदहवे तीर्थकर अनन्तनाथ के यक्ष पाताल वा वर्ग लाल है। वाहन मकर है और तीन मुग्व होते है । दिगम्बर प्राम्नाय में इसके मस्तक पर निफण नाग का होना बताया गया है किन्तु प्राचारदिनकर न पटवागयुक्त पहा है। पाताल की छह भजाए है । दिगम्बर परम्परा के अनुसार दायं ओर का तीन भजायो मे अकुरा, शूल, और कमल तथा बाये ओर को भजायो म चाबुक, हल, और फल ये प्रायुध होते है। अपराजितपृच्छा मे वज्र, अ कुश, धनुष, बाण, फल और वरद इस प्रकार छह आयुध बताये है । श्वताम्बर परम्पग के ग्रथों म दाये हाथा के प्रायध कमल, खड्ग और पाश तथा बाये हाथो के आयुध नकल, ढाल और अक्षमत्र कहे गये है।'
५. अप गाजत पृच्छा षड्भुज कहती है । प्राशाध र अाटपाणि बताने हे पर
बसुनन्दि न द्वादशभुज लिखा है । २ प्रतिष्ठासारोद्धार, ३/४१; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ट ३३५ ३ त्रिषष्टिशलाकापुरषचरित्र । निर्वाणकलिका । ग्राचारदिनकर प्रादि । ४. अमरचन्द्र के महाकाल मे ताम्रवर्ण बताया है। ५ प्रतिष्ठासारोद्धार, ३/१४२; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३३५ । ६ प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७५; निर्वाणकलिका, पन्ना ३६ ; विष्टिशलाकापुरुषचरित्र मादि ।