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________________ शासन यक्ष किन्नर ७७ पंद्रहवें तीर्थकर धर्मनाथ का यक्ष किन्नर है । उसके शरीर का वर्ण लाल है जिसे वसुनन्दि ने पद्मरागमणि के समान और प्रगाधर ने प्रवाल जैसा बताया है | श्वेताम्बर ग्रन्थों में भी अरुण वर्ण का उल्लेख है । दिगम्बर परंपरा के अनुसार किन्नर का वाहन मीन है किन्तु श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार वह कूर्म है । किन्नर के मुख तीन' और भुजाएं छह हैं । दिगम्बरों के अनुसार उसके दायें हाथों के प्रायुध मुद्गर, अक्षमाला और वरद तथा बायें हाथों के आयुध चक्र, वज्र और अंकुश है ।" श्वेताम्बरों ने दायें हाथों में प्रभय, बीजपूर और गदा तथा बाये हाथों में कमल क्षमाता प्रार नकुल ये प्रायुध बताये है। प्राराजित पृच्छा के अनुसार यह यक्ष पाश, अंकुश, धनुष, बाण, फल और वरद इस प्रकार छह ग्रायुध धारण करता है । गरुड सोलहवे तीर्थकर शान्तिनाथ के यक्ष गरुड़ का वर्ण श्याम है । उसक मुख वराह जैसा है । उसका वाहन भी वराह माना गया है किन्तु हेमचन्द्र के अनुसार वह गजवाहन और अपराजित पृच्छा कार के अनुसार शुकवाहन है । दोनो परम्परात्री के अनुसार गरुट यक्ष चतुर्भुज है किन्तु दिगम्बर लोग उसके दायें हाथो मे वज्र और चक्र तथा बायें हाथों में कमल और फल ये श्रायुध बताते है जबकि श्वेताम्बरो के अनुसार गरुड यक्ष के दायें हाथों में बीजपूर श्रीर कमल तथा बाये हाथों में नकुल और प्रक्षसूत्र य चार ग्रायुध होते है। अपराजित पृच्छा में पाश, अंकुश, फल और वरद इस प्रकार ग्रायुध कहे गये है । गधर्व सत्रहवे तीर्थकर कुन्थुनाथ का यक्ष गंधर्व है । उस गंधर्वयक्षेश्वर, गंधर्वराज यादि भी कहा जाता है । गंधर्व का वर्ण श्याम है । वसुनन्दि और आशा १. ग्राचारादन करकार पण्नयन का भी मलग से उल्लेख करत है | २. प्रतिष्ठामागद्वार, ३ / १४३; प्रतिष्ठानिलक, पृष्ठ ३३५ । ३. त्रिपटिशनाका पुरुषचरित्र, निर्वाणकलिका, आचारदिनकर आदि आदि । ८. प्रतिष्ठासारोद्धार, ३ / १४४ प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३३६ ५. आचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७५; निर्वाणकलिका, पन्ना ३६ ; त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि आदि ।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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