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शासन यक्ष
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ईश्वर
ग्यारहवें तीर्थकर श्रेयांसनाथ का यक्ष ईश्वर या यक्षेश्वर है । हेमचन्द्र प्राचार्य ने अभिधानचिन्तामणि में यक्षेश्वर नाम से और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में ईश्वर नाम से इस यक्ष का उल्लेख किया है। प्राचार दिनकर ने यक्षराज और अपराजितपृच्छा ने किनरेश नाम बताया है ।
ईश्वर या यक्षेश्वर का वर्ण श्वेत और वाहन वृष है । वह त्रिनेत्र एवं चतुर्भुज है । दिगम्बर परम्परा का यक्ष दायें हाथों में प्रक्षसूत्र और फल तथा बायें हाथों में त्रिशूल और दण्ड धारण करता है । श्वेताम्बर परम्परा में यक्ष के दायें हाथो मे मातुलिंग और गदा तथा बायें हाथों मे नकुल और प्रक्षसूत्र होते हैं । अपराजितपृच्छा में त्रिशूल, प्रक्षसूत्र, फल और वरद, ये प्रायुध बताये गये है। कुमार
बारहवे तीर्थकर वासुपूज्य का यक्ष कुमार श्वेत वर्ण का है।' उसका वाहन हंस है ।' दिगम्बरों के अनुसार इस यक्ष के तीन मुख और छह भुजाएं होती है किन्तु श्वेताम्बरो ने इसे चतुर्भुज ही कहा है । अपराजितपृच्छा में भी कुमार यक्ष को चतुर्भुज बताया गया है। पडभज की योजना में इसके दायें हाथों के आयुध बाण, गदा और वरद तथा बायें हाथों के प्रायुध धनुष, नकुल
और फल होते है।' अपराजितपृच्छा में धनुष, बाण, फल और वरद का विधान है पर श्वेताम्बर ग्रंथो मे दाये हाथों के आयुध मातुलिग और बाण तथा बाये हायो के आयुध नकुल और धनुष बताये गये है।' पण्मुख चतुर्मुख
तेरहवे तीर्थकर विमननाथ के यक्ष का नाम तिलोयपण्णत्ती मे पण्मुख बताया गया है । श्वेताम्बर परम्परा में भी उसका नाम षण्मुख मिलना है । दिगम्बर परम्पग के नेमिचन्द्र ने षण्मुख नाम से तथा वमुनन्दि और आगाधर
१. प्रतिष्ठासारोद्धार, ३-१३६ ; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३३४ २. प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७५; निर्वाणकलिका ३५ ३. अमरचन्द्र के काव्य में श्यामवर्ण बताया गया है । ४. अपराजितपृच्छा में शिखिवाहन । ५. प्रतिष्ठासारोदार, ३/१४०; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३३४ । ६. प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७५; निर्वाणकलिका पन्ना ३५