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जन प्रतिमाविज्ञान
प्रवचनसारोबार में दो चक्र और दो मुद्गर । किन्तु अन्य श्वेताम्बर ग्रंथो मे दाये हाथ में चक्र और बाये हाथ मे मुद्गर होने का उल्लेख मिलता है।' पद्मानंद महाकाव्य में दाये हाथ का मायुध खड्ग बताया गया है।' अजित
नौवे तीर्थकर पुष्पदन्त या सुविधिनाथ के यक्ष या नाम अजित है । अपराजितपृच्छा मे उमका वर्णन जय नाम से किया गया है । अजित का वर्ण श्वेत, वाहन कर्म और भुजाएं चार है । दिगम्ब। के अनुमार अजित यक्ष के दाय हाथ अक्षमाला और वरदमुद्रा मे युक्त होते है तथा वाये हाथो में शक्ति और फल होते है ।' श्वेताम्बरी के अनुसार अजित के दाय हाथो में मातुलिग और अक्षमूत्र तथा बायें हाथो मे नकुल और कुन्त (भाला) होते है। आचार दिनकर ने अक्षसूत्र के स्थान पर परिमलयुक्त मुक्कामाला का उल्लेख किया है । अपराजितपृच्छा के प्रायुध विचार मे दिगम्बर ग्रंथो का अनुमरण किया गया है पर दाये और बाये हाथो के आयुध अलग नही कहे गये हे । ब्रह्म
दसवे दीर्थकर शीतलनाथ का यक्ष ब्रह्म श्वेतवर्ण, कमलासन "अष्टबाहु और चतुर्मुख है। श्वेताम्बर ग्रंथो में उसके द्वादशाक्ष होने का उल्लेख है । आशाधर' और नेमिचन्द्र ने उसके दाये हाथो के प्रायुध शर, परशु, खड्ग और वरद तथा वाये हाथो के प्रायुध धनुष, दण्ड, खेट, और वज्र बताये है । श्वेताम्बर ग्रंथों में मातुलिंग, अभय, पाश और मुद्गर ये दाये हाथ। के तथा गटा. प्रका. नकल प्रोर प्रक्षसत्र ये बाये दाथो के प्रायध कहे गये हैं ।
१. निवोणकालका, पन्ना :५; प्राचारोदनकर, उदय ३३, पन्ना १७४ ;
पिप्टिशलाकापुरुषचरित्र । २. अट मजिनचरित्र, १७ । ३. प्रतिष्ठासारोद्धार, ३/१३५; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३३३ । ४, उदय ३३, पन्ना १७४ । ५. अपराजितपृच्छा मे हंसवाहन । ६ प्रतिष्ठासागेद्धार, ३/१३८ ७, प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३३४ । ८. निर्वाणकलिका, पन्ना ३५; प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७४ ;
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित इत्यादि ।