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________________ जैन प्रतिमाविज्ञान कुबेर भृकुटि m गुह्यक खेन्द्र यक्षेन्द्र यक्षेश पर १६ वरुण कुबेर कुबेर कुबेर मल्लि भृकुटि वरुण वरुण वरुण मुनिमुव्रत गोमध भृकुटि भृकुटि नमि पावं गांमद गोमेध गोमेध नेमि मातंग धरण पाव पाच पार्श्व मातंग मातंग मातंग महावीर तिलोयपण्णनी और प्रतिष्ठामारमंग्रह की मूचिया दिगम्बरों द्वाग मान्य हैं । अभिधानचिन्तामणि की मूर्ची ट्वेताम्बर परम्पग की मूवी है । अपगजितपच्छा ने चतुरानन और जय जैसे नये नाम जोड़ दिये है। तिलोयपण्णती की सूची में क्रमांक ५ के पश्चात् एक नाम छट जाने से क्रमभेद हो गया है और उसके कारण मातंग यक्ष चौबीसवें के बजाय तेईसवे स्थान पर प्रा गया है। चौबीस की सूची पूरी करने के लिये तिलोयपण्णत्नी म गुह्यक को अंतिम यक्ष कल्पित किया गया । गुह्यक के नाम के पश्चात् इदि एद जक्वा चउर्बीम उमभपहुदीण का उल्लेख होने से गुह्यक एक नाम ही प्रतीत होता है न कि यक्ष का पर्यायवाची । दिगम्बरो प्रार श्वेताम्बर। की मान्यता न यक्षों के नामां के सबंध में जो भेद है, वह संक्षेप में निम्न प्रकार है : चौथे तीर्थ कर के यक्ष का नाम निलोय पण्णनी में यज्ञेश्वर किन प्रवचनसारोद्धार में ईश्वर बताया गया है । अपराजित पृच्छा में दिये गये चतुगनन नामका आधार अज्ञात है । छठे यक्ष का नाम दिगम्बर परम्परा में पुष्प और श्वेताम्बर परम्परा में कुसुम प्रसिद्ध है। अभिधानचिन्तामणि मे सुमुख नाम होने पर भी उसके रचयिता प्राचार्य हमचन्द्र ने विष्टि गलाकापुरुषारत्र में कुसुम नाम बताया है । पाठवे यक्ष का नाम दिगम्बरों में श्याम और श्वेताम्बरों मे विजय प्रचलित है । ग्यारहवें यक्ष का दिगम्बर लोग ईश्वर किन्तु श्वेताम्बर यक्षेश्वर कहते है । अठारहवे यक्ष का नाम दिगम्बर ग्रन्थों में खेन्द्र पर श्वेता म्बर ग्रन्थों में यक्षेन्द्र मिलता है । गोमेद नाम दिगम्बरों में अधिक प्रचलित है १. नामचन्द्र न गामघ नाम दिया है। प्रतिष्ठासारमग्रह में चूक म नाम रह गया है किन्तु प्राशाधर के प्रतिष्ठासारोद्धार मे गोमेद नाम का उल्लेख है। २. प्रवचनसारोबार में वामन नाम मिलता है।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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