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जैन प्रतिमाविज्ञान
वसुनन्दि ने देवी को अंतुजाहस्ता कहा है। प्राशाघर ने एक हाथ का प्रायुध वीणा बताया है, शेष प्रायुध नही बताये। नेमिचन्द्र ने अंकुश, कमल और बीजपूर इन तीन प्रायुधों का नामोल्लेख किया है।' चौथे प्रायुध का उल्लेख नही किया। यदि नेमिचन्द्र द्वारा गिनाये गये तीन आयुषों में प्राशाधर द्वारा बताया गया चतुर्थ प्रायुध वीणा जोड़ दिया जावे तो दिगम्बर परम्परा के अनुसार वजांकुशा के चारों हाथों में क्रमशः वीणा, अंकुश, कमल और बीजपूर ये चार प्रायुध होना चाहिये । निर्वाणकलिकाकार ने दायें हाथों के आयुध वरद और वज तथा बायें हाथों के आयुध मातुलिंग और अंकुश कहे हैं ।' प्राचार दिनकर में खड्ग, वज, फलक (ढाल) और कुन्त (भाला) ये चार पायुष बताये गये हैं। जाम्बूनदा /अप्रतिचका
" पंचम विद्यादेवी का नाम दिगम्बर परम्परा में जाम्बूनदा और श्वेताम्बर परम्परा में अप्रतिचक्रा या चक्रेश्वरी मिलता है। अप्रतिचक्रा को प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ की शासनदेवता भी माना गया है । पद्मानन्द महाकाव्य (१/८३-८४) में कहा है कि चक्रेश्वरी सभी देवतामों में अधिदेवता है और वही देवी विद्यादेवियों में अप्रतिचक्रा के नाम से प्रसिद्ध है।
जाम्बूनदा पौर प्रप्रतिचका दोनों का ही वर्ण स्वर्ण के समान पीत बताया गया है । जाम्बूनदा का वाहन मयूर है और अप्रतिचक्रा का गरुड । अप्रतिचक्रा के चारों हाथों में चक्र होते हैं। जाम्बूनदा के आयुध खड्ग, कुन्त, कमल और बीजपूर हैं।" पुरुषदत्ता
छठी विद्यादेवी पुरुषदत्ता को दिगम्बर ग्रन्थ श्वेतवर्ण की और श्वेताम्बर ग्रन्थ पीतवर्ण वाली कहते हैं । दिगम्बरों के अनुसार उसका वाहन कोक है' और श्वेताम्बरों के अनुसार महिषी (भेस) । दिगम्बर परम्परा के अनु
१. प्रातष्ठातलक, पृष्ठ २८५ । २. निर्वाणकलिका, पन्ना ३७ । ३. उदय ३३, पन्ना १६२ । ४. निर्वाणकलिका, पन्ना ३७ । ५. नेमिचन्द्र, पृष्ठ २८५ । ६. माशापर/३-४२ ७. निर्वाणकलिका, पन्ना ३७