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विद्यादेवियां
खड्ग, कमल और फल, ये चार प्रायुध बताये गये है । दिगम्बरों ने तीसरे तीर्थकर की यक्षी का नाम भी प्रज्ञप्ति कहा है किन्तु वह यक्षी पक्षीवाहना और षड्भुजा होती है। वज्रशृंखला
तृतीय विद्यादेवी वशृखला का वर्ण सोने के समान पीत है । दिगम्बर ग्रन्थों में उसका वाहन हाथी कहा गया है पर श्वेताम्बरों के अनुसार वह पद्मवाहना है । प्राचार दिनकर में वजशृंखला के केवल दो प्रायुधो का नामोल्लेख किया गया है, वे हैं शृंखला मोर गदा किन्तु निर्वाण कलिका' के अनुसार देवी के चार हाथों मे से उपरले दोनों हाथो में शृखला होती है और निचला दाया हाथ वरद मुद्रा में तथा निचला बायां हाथ पद्म धारण किये होता है। दिगम्बर परम्परा के प्रतिष्ठातिलक के वर्णनके अनुसार, वज्रशृखला, शंख, कमल और बीजपूर ये चार वशृखला विद्यादेवी के प्रायुध है। आशाधर ने वज और शृखला इन दोनों को भिन्न भिन्न आयुध बताया है । वमुनन्दि ने शृंखला का तो नामोल्लेख किया है पर अन्य आयुधो का विवरण नही दिया । केवल यह सूचित किया है कि देवी चतुर्भुजा होती है। दिगम्बर परम्परा म चतुर्थ तीर्थकर की यक्षी का नाम भी वज्रशृंखला है किन्त उस यक्षी का स्वरूप भिन्न है । वज्राँकुशा
चतुर्थ विद्यादेवी का यह नाम भी बोद्धा में प्रभावित प्रतीत ता है । वसुनन्दि न वज्राकुशा का वर्ण अंजन के समान काला बताया है पर अन्यत्र उसे मोने के सगान पीतवर्णवाली कहा गया है। दिगम्बर परम्परा के अनुमार इस देवी का वाहन पुष्पयान है किन्तु श्वेताम्बर परम्परा म वह गज माना गया है । वज्राकुशा के चार हाथ होते है । दिगम्बर ग्रन्थकारा मे से न तो वमुनन्दि ने, न पायाधर ने और न ही नेमिचन्द्र ने सभी प्रायुधो के नाम लिये है।
१. नेमिचन्द्र, पृष्ठ ३८४ २. उदय ३३, पन्ना १६२ ३. पन्ना ३७ ४. नेमिचन्द्र, पृष्ठ २८५ ५. निर्वाणकलिका, पन्ना ३७; प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १६२ ६, वही