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जन प्रतिमाविज्ञान
सरस्वती की स्तुतिमें अनेक जैन प्राचार्यों और पंडितों ने कल्प, स्तोत्र प्रोर स्तवन रचे हैं । मल्लिषेण की रचना का उल्लेख ऊपर किया गया है । बप्पभट्टि का सरस्वतीकल्प, साध्वी शिवार्या का पठितसिद्धसारस्वतस्तव, जिनप्रभसूरि का शारदास्तवन और विजयकीर्ति के शिष्य मलयकीर्ति का सरस्वतीकल्प कुछेक प्रसिद्ध रचनामों में से हैं । मलयकीति ने सरस्वती को कलापिगमना और पुण्डरीकासना बताया है।' उन्होंने भी सरस्वती को त्रिनयना और चतुर्भुजा कहा है । प्राचारदिनकर में श्रुतदेवता को श्वेतवर्णा, श्वेतवस्त्रधारिणी, हंसवाहना, श्वेतसिंहासनासीना, भामण्डलालंकृता और चतुर्भुजा बताया गया है। देवी के बायें हाथों में श्वेतकमल और वीणा तथा दायें हाथों में पुस्तक पौर मुक्ताक्षमाला का विधान किया गया है किन्तु प्राचारदिनकर के ही सरस्वती स्तोत्रमें देवी के बायें हाथों के प्रायुध वीणा और पुस्तक तथा दायें हाथों के आयुध माला और कमल कहे गये हैं । निर्वाणकलिका में भी सरस्वती के रूप का वर्णन मिलता है । इस ग्रन्थ के बिम्बप्रतिष्ठाविधि स्थल में सरस्वती को द्वादशांग श्रुतदेव की अधिदेवता कहा गया है। निर्वाणकलिका के अनुसार श्रुतदेवता के दायें हाथों में से एक हाथ वरद मुद्रा में होता है और दूसरे हाथ में कमल होता है । बायें हाथों के प्रायुध पुस्तक और अक्षमाला बताये गये हैं।' विद्या देवियां
अभिधानचिन्तामणिमें विद्यादेवियों के नामों का उल्लेख करते हये उन्हें वाक्, ब्राह्मी, भारती, गो, गी, वाणी, भाषा, सरस्वती, श्रुतदेवी, वचन, व्याहार, भाषित पोर वचस् भी कहा गया है । इससे प्रतीत होता है कि जैनों की विद्यादेवियां वस्तुतः अपने नामके अनुसार वाणी की विभिन्न प्रकृतियों के कल्पित मूर्त रूप हैं । विद्यादेवियों का स्वरूप बताते समय प्रायः सभी ग्रन्थोमें उन्हें ज्ञान से संयुक्त कहा गया है ।
१. सरस्वतीकल्प, जैनसिद्धान्त भवन पारा का हस्तलिखित ग्रन्थ क्रमांक __ख/२३६ । २. उदय ३३, पन्ना १५५ । ३. निर्वाणकलिका. पन्ना १७ ४. वही, पन्ना ३७ ५. देवकाण्ड (द्वितीय)