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चतुनिकाय देव
व्यंतर देवों के किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच ये आठ विकल्प हैं। इनके इन्द्रों के वाहन और आयुधों का विवरण नेमिचन्द्र ने प्रतिष्ठातिलक में दिया है। जैसे किन्नरेन्द्र का वाहन अष्टापद और प्रायुध नागपाश ; राक्षसेन्द्र का वाहन सिंह और प्रायुध भाला।
स्वर्गीय डाक्टर हीरालाल जी जैन ने इन जातियों के संबंध में लिखा है
__ "राक्षस, भूत, पिशाच आदि चाहे मनुष्य रहे हों अथवा पोर किसी प्रकार के प्राणी, किन्तु देश के किन्ही वर्गों में इनकी कुछ न कुछ मान्यता थी जिसका प्रादर करते हुए जैनियों ने इन्हें एक जाति के देव स्वीकार किया है ।"२
___ यहां यक्षों के द्वादश भेद बता देना आवश्यक है, वे हैं माणिभद्र, पूर्णभद्र, शैलभद्र, मनोभद्र, भद्रक, सुभद्र, सर्वभद्र, मानुष, धनपाल, स्वरूपयक्ष, यक्षोत्तम
और मनोहरण । इनके माणिभद्र और पूर्णभद्र नामक दो-दो इन्द्र और उन इन्द्रों के कुन्दा, बहुपुत्रा, तारा और उत्तमा नामक देवियां होती हैं ।' उल्लेखनीय है कि पूर्णभद्र, मणिभद्र, शालिभद्र, सुमनभद्र, लक्षरक्ष, पूर्णरक्ष, सर्वण, प्रादि यक्षों का उल्लेख भगवतीसूत्र (३-७) में भी मिलता है । ज्योतिष्क देव
इन्हें पटलिक भी कहते हैं। इनके पांच समूह हैं, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे । चन्द्र इन्द्र है और सूर्य प्रतीन्द्र । प्रत्येक चन्द्र के अठासी ग्रह हैं, उनमें से प्रथम पांच बुध, शुक्र, बृहस्पति, मंगल और शनि है । प्रत्येक चन्द्र के अट्ठाईस नक्षत्र हैं जिनकी सूची वही है जो सामान्यतया अन्य ग्रन्थों में मिलती है । नक्षत्रों का प्राकार निम्न प्रकार बताया गया है ।
बीजना, गाड़ी की उद्धिका, हिरण का मस्तक, दीप, तोरण, छत्र, बल्मीक, गोमूत्र, शरयुग, हस्त, उत्पल, दीप, प्रधिकरण, हार, वीणा, मोंग, बिच्छू, दुष्कृतवापी, सिंह का मस्तक, हाथी का मस्तक, मुरज, गिरता पक्षी, सेना, हाथी का पूर्व शरीर, हाथी का ऊपरी शरीर, नौका, घोड़े का मिर, चूल्हा ।'
१. पृष्ठ ३०६ स ३०८ । २. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृष्ठ ५। ३. तिलोयपण्णत्ती, ६/४२-४३ ४. वही, ७/७ ५. वही, ७/१४-२२ ६. वही, ७/२५-२८ ७. वही, ७/४६५-६७