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________________ जन प्रतिमाविज्ञान चिह्न प्रस्त्र और सेना आदि के संबंध में निम्नप्रकार विवरण दिया है:इन्द्र वाहन मुकट चिह्न प्रस्त्र सेना असुरेन्द्र लुलाय चूडामणि मुद्गर महिषादि सप्तानीक नागकुमारेन्द्र कमठ नागफण नागपाश नागादि सप्तानीक सुपर्णकुमारेन्द्र द्विरद सुपर्ण दण्ड सुपर्णादि सप्तानीक द्वीपकुमारेन्द्र तुरंग द्विप द्विपादि उदधिकुमारेन्द्र वारीभ मकर वडिदण्ड मकरादि स्तनितकुमारेन्द्र मृगेन्द्र वन खड्ग खड्गादि विद्युत्कुमारेन्द्र वराह स्वस्तिक तडित् करमादि दिक्कमारेन्द्र दिक्कुंजर सिंह परिघा सिंहादि अग्निकुमारेन्द्र महास्तंभ कुंभ उल्का शिबिकादि वातकुमारेन्द्र तुरंग तुरंग वृक्ष तुरंगादि भैरवपद्मावतीकल्प में प्राठ प्रकार के नाग बताये गये हैं; अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोट,पदम, महासरोज, शंखपाल और कुलिक । वासुकि ओर शंख को क्षत्रियकल का तथा रक्तवर्ण एवं धराविष कहा गया है । कर्कोटक और पद्म शूद्रकुल के, वृ.ण्णवर्ण एवं अब्धिविष हैं। अनन्त और कलिक का कुल विप्र और वर्ण चन्द्रकान्त के समान है, वे अग्निविष हैं । तक्षक और महासरोज वश्य हैं, पीतवर्ण एवमरुद् विष हैं । घराविष से गुरुता और जड़ता पाती है, देह में सन्निपात होता है । प्रब्धिविष से लालाकण्ठ निरोध होता है, दंशस्थान गलता है । बह्निविष के दोष से गंडोद्गम और दृष्टि अपटु होती है । मरुद् विष के दोष से प्रास्यशोषण बताया गया है । पद्मावती कर्कोट नाग पर प्रासीन होती हैं। व्यन्त र देव व्यन्तर देवो के आठ विकल्प बताये गये है। उनके भी क्रमशः दस, दस, दस, दस, बारह, सात, सात मौर चौदह भेद होते है। जैसाकि ऊपर कहा जा चुका है, व्यन्त र देव मध्य लोक में भी रहते हैं और अधोलोक की प्रथम पृथ्वी के भाग में भी । जम्बूद्वीप के चार गोपुरद्वारों के रक्षक विजय, वैजयन्त. जयन्त और अपराजित व्यन्तरों के संबंध में ऊपर कहा जा चुका है। १. तिलोयपण्णत्ती, ६।२५ २. वही ६/३३.-५०
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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