SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुनिकाय देव ४७ मुकुट होता है । प्रत्येक इन्द्र के पूर्वादिक दिशाओं के रक्षक सोम, यम, वरुण और धनद, ये चार-चार लोकपाल होते हैं । भवनवासी देवों के इन्द्रों के नाम तिलोयपण्णत्ती' में ये बताये गये हैं : दक्षिण इन्द्र उत्तर इन्द्र चमर भूतानंद देण, जलप्रभ असुर कुमार नागकुमार सुपर्णकुमार द्वापकुमार उदधिकुमार स्तनितकुमार विद्युत्कुमार दिक्कमार अग्निकमार वायुकुमार वैरोचन धरणानंद वेणधारक वशिष्ट जलकान्त महाघोष हरिकान्त अमितवाहन अग्निवाहन प्रभंजन घोष हरिषण अमितगति अग्निशिखी बेलम्ब अश्वत्थ, मप्तपर्ण, शाल्मलि, जामुन, बेत, कदंब, प्रियंगु, शिरीष, पलाश और राजद्रम, ये दम चैत्यवृक्ष क्रमशः इन भवनवासी देवो के कुलचिह्न होते है।' अमुरकमार देवा के सिकतानन आदि अनेक भेद होते हैं । वे अधोलोक में तीसरी पृथ्वी (बालुकाप्रभा) तक जाकर नारकी जीवों को लड़ाते रहते है और उससे मन में संतुष्ट होते है ।५ पाशाधर' और नेमिचन्द्र ने भवनवासी दवा के इन्द्रो के वाहन, मुकुट २. वही, ३१७१. ३. वही, ३।१३--१६ वही, ३।१३६ ५. वही, २।३५० ६. प्रतिष्ठासारोद्धार, ३१८६-६२ ७. प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३०१--०४
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy