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पंचम अध्याय चतुर्निकाय देव
जैन परम्परा में लोक के तीन भाग बताये गये हैं, ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक मोर धोलोक । मध्यलोक में हम निवास करते हैं । यह पृथ्वी गोलाकार है मौर प्रसंख्य द्वीप समूहों से वेष्टित है । बीच में जम्बू नामक द्वीप है । उसे वलयाकृति लवणसमुद्र वेष्टित किये हुये है ।
जम्बूद्वीप में छह कुलपर्वत होने से उसके सात क्षेत्र बन गये हैं । दक्षिण से क्रमश: हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी ये छह कुलाचल हैं। क्षेत्रों के नाम हैं भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत मौर ऐरावत | विदेह क्षेत्र के मध्य में मेरुपर्वत स्थित है ।
भरतक्षेत्र के बहुमध्य भाग में विजयार्ध पर्वत है । हिमवान् पर्वत से निकलनेवाली पूर्वगामिनी गंगा और पश्चिमगामिनी सिन्धु नदियों तथा विजयार्ध के कारण भरतक्षेत्र के छह खण्ड हो गये हैं । विजयार्धं पर्वत के कूटों पर व्यन्तर जाति के देवों के प्रासाद हैं । उनके नाम भरत, नृत्यमाल, माणिभद्र, वैताढ्य, पूर्णभद्र, कृतमाल, भरत और वैश्रवण हैं । गंगानदी के मणिभद्रकूट के दिव्य भवन में बला नामक व्यंतर देवी का और सिन्धु के बीच प्रवना या लवणा व्यंतर देवी का निवास है । उत्तर भरत के मध्यखण्ड के वृषभ गिरि पर वृषभ नामक व्यंतर रहता है
जम्बूद्वीप के चारों और चार गोपुर द्वार हैं । उनके नाम विजय, वैजयन्त, जयन्त र अपराजित है। ये नाम क्रमश: पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में स्थित द्वारों के हैं । इन द्वारों के अधिपति व्यन्तर देव हैं । द्वारों के जो नाम हैं, वे ही नाम उन देवों के हैं ।
मध्यलोक से सात राजु ऊपर का क्षेत्र ऊर्ध्वलोक है । मध्यलोक से घोलोक है | ऊर्ध्वलोक में सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारों की स्थिति है । उनके ऊपर स्वर्ग, ग्रैवेयक श्रौर अनुत्तर विमान हैं जिनमें देवों का निवास है । अधोलोक में भी देवों का निवास है ।
१. जंबूदीवपण्णत्ति संग हो, १ / ३५-३६ तिलोयपण्णत्ती, ४/४१-४२ २ . वही, १ / ४२ ; वही ४/७५