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जैन प्रतिमाविज्ञान हैं। अरिष्टनेमि के विवाह की पूरी तैयारियां हो चुकी थीं । वे बारात लेकर पहुंच भी गये थे कि पशुओं के बंधन देखकर उन्हें संसार से बैराग्य हो गया । तीर्थंकर पार्श्वनाथ की तप अवस्था में पूर्व बैर वश कमठ नामक देव ने उन पर भीषण उपसर्ग किया था।
ऋषभदेव के पुत्र बाहुबली की प्रतिमाएं भी निर्मित की जाती है । उन में उन्हें कठोर तपस्या में रत दिखाया जाता है। बाहुबली की प्रतिमाएं केवल कायोत्सर्ग प्रासन की होती हैं ।
अवनितलगतानां कृत्रिमाकृत्रिमाणां वनभवनगतानां दिव्यवैमानिकानाम् । इह मनुजकृतानां देवराजाजितानां जिनवरनिलयानां भावतोऽहं स्मरामि ।।
अष्ट प्रातिहार्य
सिहासन, दिव्यध्वनि, चामरेन्द्र, भामण्डल, प्रशोकवृक्ष, छत्रत्रय, दुंदुभि पोर पुष्पवृष्टि ये प्रष्ट प्रातिहार्य हैं। अष्ट मंगलद्रव्य
श्वेतछत्र, दर्पण, ध्वज, चामर, तोरणमाला, तालवृन्त (बीजना), नंद्यावर्त और प्रदीप ये अष्ट मंगलद्रव्य हैं। इनकी स्थापना जिनपूजा विधान में की जाती है । मथुरा के प्रायागपट्टों पर इनकी प्रतिकृतियां उपलब्ध हुयी हैं । तिलोयपण्णती में भृगार, कलश, दर्पण, ध्वज, चामर, छत्र, बीजन और सुप्रतिष्ठ ये आठ मंगलद्रव्य गिनाये गये है।
१. प्रतिष्ठासारसंग्रह, ६/३५-३६ प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३६६ २. ३/४६