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________________ चतुर्विशति तीर्थकर नेमिनाथ और महावीर पद्मासन मुद्रा में स्थित अवस्था से मुक्त हुगे, शेष सभी तीर्थकरों ने कायोत्सर्ग प्रासन से निर्वाण प्राप्त किया ।' तीर्थकरों के निर्वाण स्थलों की वंदना-पूजा जैन लोग किया करते हैं । वे निर्वाण भूमियां निम्न प्रकार हैं :-- ऋषभनाथ कैलाश या अष्टापद वासुपूज्य चम्पापुरी नेमिनाथ ऊर्जयन्तगिरि महावीर पावापुरी अन्य तीर्थंकर सम्मेद शिखर नव देवताराधन नेमिचन्द्र आदि ग्रंथकारों ने नवदेवताराधन का एकत्र उल्लेख किया है । तदनुसार अप्टदलकमल की प्राकृति का निर्माण कर उसके मध्य की कणिका पर अर्हत् परमेष्ठी की स्थापना की जाती है और चारों दिशाओं में स्थित पत्रों पर सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और साधु इन चार परमेष्ठियों की तथा कोणस्थ दलों पर जिनधर्म, जिनागम, जिनविम्बों और जिनमंदिगे की स्थापना करके पूजा की जाती है । वस्तुतः जैन लोग इन्ती नौ की अष्ट द्रव्य गे सम्पूर्ण पूजा किया करते हैं । यक्षादि की अष्टद्रव्य पूजा नहीं की जाती । उन्हें पूजा का अंश भेंट किया जाता है । जिनमंदिगे और जिनबिम्बा की पूजा में कृत्रिम और अकृत्रिम जिनालयों, नंदीश्वरद्वीप के ५२ जिनालयों, ज्योतिप्क, व्यन्तर और भवनवासी देवों के प्रासादो में प्रतिष्ठित जिनालयों, पंचमेरु स्थित, कुलपर्वतों पर स्थित, जंबूवृक्ष, शाल्मलिवृक्ष और चैत्यवृक्षों पर स्थित, वक्षारमप्यादि में, इष्वाकार गिरि में और कुण्डलद्वीप आदि में स्थित जिनालया और जिनविम्बा की पूजा जैनमंदिरों में हुमा करती है। विशिष्ट शिल्पांकन बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ और तेईसवे तीर्थकर पाश्वनाथ के. जीवनकाल से संबंधित दो घटनाओं का अंकन भी शिल्प में किया जाता १. निलोयपण्णत्ती में ऋषभ, वासुपूज्य, और महावीर का पल्यंकबद्ध प्रासन (पद्मामन) से मुक्त होना बताया गया है। २. प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ७३
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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