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चतुविशति तीर्थकर
६. पद्मप्रभ
७.
८.
सुपार्श्वनाथ
चन्द्रप्रभ
ε.
पुष्पदन्त शीतलनाथ
१०.
११. श्रेयांसनाथ
१२. वासुपूज्य
१३.
विमलनाथ
१४.
अनंतनाथ
१५.
धर्मनाथ
१६. शान्तिनाथ
१७.
कुन्थुनाथ
१८.
प्ररनाथ
१६. मल्लिनाथ
मुनिसुव्रतनाथ
२०.
२१. नमिनाथ
नेमिनाथ
पार्श्वनाथ
२२.
२३.
२४. महावीर
तीर्थकरों के लांछन
कौशाम्बी
वाराणसी
चन्द्रपुरी
काकन्दी
भद्दलपुर
सिंहपुरी
चम्पापुरी
कंपिल्लपुर
अयोध्या
रत्नपुर
हस्तिनागपुर
हस्तिनागपुर
हस्तिनागपुर
मिथिला
राजगृह कुशाग्रपुर
मिथिला
शौरीपुर
वाराणसी
कुण्डलपुर
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प्रारम्भ में तीर्थंकरों की प्रतिमानों पर उनके अलग
अलग लांछन या चिह्न नही बनाये जाते थे । उन प्रतिमात्रों पर उत्कीर्ण किये लेखों से ही तीर्थकरों की पहचान होती थी । मथुरा की कुषाण कालीन प्रतिमानों पर तीर्थंकरों के चिह्न नही मिलते हैं। इतना अवश्य है कि कुछेक तीर्थंकर प्रतिमाएँ अपने विशेष स्वरूप के कारण भी पहचानी जाती थी । ऋषभनाथ की प्रतिमाएँ जटामुकुटरूपशेखर से या कन्धों पर लहराते केशगुच्छसे', सुपार्श्वनाथ की प्रतिमाएं पञ्चफण सर्प से और पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं सप्तफण सर्पके छत्र से पहचान ली जाती थी ।
१. रविषेण कृत पद्मपुराण: वातोद्भूता जटास्तस्य रेजुराकुलमूर्तयः । धूमालय इव ध्यानबह्निसक्तकर्मणः ।।
तिलोयपण्णत्ती ४/२३०