SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन प्रतिमाविज्ञान अनुसार चौदह । इन स्वप्नों का अंकन शिल्पकृतियों में भी मिलता है। खजुराहो के जैन मंदिरों में गर्भगृह के प्रवेशद्वार पर ही ऊपर माता के स्वप्नों का शिल्पांकन है । स्वप्न ये हैं : १. ऐरावत हस्ती ४. गजलक्ष्मी ७. सूर्य १०. कमल १३. देवविमान १६. निधूम अग्नि ।' २. वृषभ ३. सिंह ५. मालायुग्म ६. चन्द्र ८. मीनयुग्म ६. पूर्णकुम्भयुग्म ११. सागर १२, सिंहासन १४. नागविमान १५. रत्नराशि श्वेताम्बर परम्परा में मीनयुग्मके स्थान पर महाध्वज तथा सिंहासन पोर नागविमान ये दो स्वप्न कम होते हैं ।' पद्मानन्द महाकाव्य के सप्तम सर्ग में वृषभ, गज, सिंह, गजलक्ष्मी, माला, चन्द्र, सूर्य, ध्वज, कुम्भ, सरोवर, सागर, देवविमान, रत्नपुज्ज और अग्नि, इस प्रकार क्रम बताया गया है । यही क्रम त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में भी मिलता है। स्वप्नदर्शन के पश्चात् तीर्थकर का जीव माता के वदनमें प्रवेश करता है। तीर्थंकरों के जन्मस्थान तिलोयपण्णत्ती में तीर्थंकरों के जन्मस्थानों की सूची निम्न प्रकार दी गयी है ।१. ऋषभनाध अयोध्या २. अजितनाथ अयोध्या ३. संभवनाथ श्रावस्ती ४. अभिनंदननाथ अयोध्या ५. सुमतिनाथ अयोध्या १. प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३६३-४०३ । २. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ११, १६-२१; उत्तरपुराण, पर्व ४८; सकलचन्द्र कृत प्रतिष्ठाकल्प, पन्ना २४ प्रादि ।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy