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________________ जैन प्रतिमाविज्ञान राजगृह के वैभार पर्वत की एक नेमिनाथ प्रतिमा' ( जो चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय की है) ऐसी सर्वप्राचीन प्रतिमा जान कि तीर्थंकर का चिह्न भी प्राप्त हुआ है । इससे पूर्व की प्रतिमाओं पर चिह्न परिलक्षित नहीं किये जा सके हैं । पड़ती है जिसपर अभी तक प्राप्त ३८ वसुविन्दु (जयमेन ) ने उल्लेख किया है कि चिह्न तीर्थंकरों के सुखपूर्वक पहचान लिये जाने और अचेतनमें संव्यवहार सिद्धि के लिये स्थापित किये जाते है ।` तिलोयपण्णत्ती' की सूची के अनुसार चतुर्विंशति तीर्थकरों के चिह्न निम्न प्रकार है : १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ६. १० ११. १२. १३. १४ १५. १६. १७. ऋषभनाथ अजितनाथ संभवनाथ अभिनन्दननाथ सुमतिनाथ पद्मप्रभ सुपार्श्वनाथ चन्द्रप्रभ पुष्पदन्त शीतलनाथ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ शान्तिनाथ कुन्थुनाथ १८. अरनाथ वृष गज २. प्रतिष्ठापाठ, ३४७ ३ ४/६०४-६०५ प्रश्व वानर कोक पद्म नंद्यावर्त अर्धचन्द्र मकर स्वस्तिक गण्ड महिष वराह सेही वज्र हरिण छाग तगरकुसुम ( मत्स्य ? ) १. आकं० सर्व आफ इण्डिया, वार्षिक प्रतिवेदन, १९२५-२६, पृष्ठ १२५ इत्यादि ।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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