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जैन प्रतिमाविज्ञान
राजगृह के वैभार पर्वत की एक नेमिनाथ प्रतिमा' ( जो चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय की है) ऐसी सर्वप्राचीन प्रतिमा जान कि तीर्थंकर का चिह्न भी प्राप्त हुआ है । इससे पूर्व की प्रतिमाओं पर चिह्न परिलक्षित नहीं किये जा सके हैं ।
पड़ती है जिसपर अभी तक प्राप्त
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वसुविन्दु (जयमेन ) ने उल्लेख किया है कि चिह्न तीर्थंकरों के सुखपूर्वक पहचान लिये जाने और अचेतनमें संव्यवहार सिद्धि के लिये स्थापित किये जाते है ।` तिलोयपण्णत्ती' की सूची के अनुसार चतुर्विंशति तीर्थकरों के चिह्न निम्न प्रकार है :
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
६.
१०
११.
१२.
१३.
१४
१५.
१६.
१७.
ऋषभनाथ
अजितनाथ
संभवनाथ
अभिनन्दननाथ
सुमतिनाथ
पद्मप्रभ
सुपार्श्वनाथ
चन्द्रप्रभ
पुष्पदन्त
शीतलनाथ
श्रेयांसनाथ
वासुपूज्य
विमलनाथ
अनंतनाथ
धर्मनाथ
शान्तिनाथ
कुन्थुनाथ
१८. अरनाथ
वृष
गज
२. प्रतिष्ठापाठ, ३४७
३ ४/६०४-६०५
प्रश्व
वानर
कोक
पद्म
नंद्यावर्त
अर्धचन्द्र
मकर
स्वस्तिक
गण्ड
महिष
वराह
सेही
वज्र
हरिण
छाग
तगरकुसुम ( मत्स्य ? )
१. आकं० सर्व आफ इण्डिया, वार्षिक प्रतिवेदन, १९२५-२६, पृष्ठ १२५
इत्यादि ।