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जैन प्रतिमाविज्ञान
तिलोयपण्णती ने शान्ति, कुन्य और प्रर का वंश कुरु, मुनिसुव्रत और नेमि का वंश यादव या हरि, पार्श्वनाथ का उग्र, महावीर का नाथ (ज्ञातृ) और शेष तीर्थकरो का वंश इक्ष्वाकु बताया है । तीर्थकरों के वर्ण
अभिधानचिन्तामणि' के अनुसार, पद्मप्रभ और वासुपूज्य रक्तवर्ण, चन्द्रप्रभ और पुष्पदन शुक्लवर्ण, मुनिसुव्रन और नेमि कृष्णवर्ण, मल्लि और पार्श्वनाथ नीलवर्ण तथा शेष तीर्थकर स्वर्ण के समान पीते वर्ण के थे। तिलोयपण्णत्ती मे, पद्मप्रभ और वासुपूज्य को मूगे के समान रक्त वर्ण सुपाव और पार्श्व को हग्त् िवर्ण, चन्द्रप्रभ और पुष्पदन्त को श्वेतवणं, मुनिसुव्रत और नेमि को नीलवर्ण तथा अन्य सभी को स्वर्ण वर्ण बताया गया है । प्राशाधर' के अनुसार मुनिसुव्रत और नेमि श्यामल एवं सुपार्श्व और पार्श्व मरकतमणि के समान प्रभावाले है । वसुनन्दि' ने पद्मप्रभ को पद्म के समान, वामुपूज्य को विद्रुम के समान, सुपार्श्व और पार्श्व को हरित्प्रभ तथा मुनिसुव्रत और नेमि को मरकतमदृश कहा है। अपराजितपृच्छा' मे पद्मप्रभ और धर्मनाथ लाल कमल के समान, सुपार्श्व और पार्श्व हरित्, नेमि श्याम और मल्लि नील वर्ण है । वर्णो की योजना अक्सर चित्रकर्म मे की जाती है । चन्देरी के जैनमदिर की चौबीसी प्रतिमाएं तीर्थकरो के वर्णो के अनुसार निमित करवाकर प्रतिष्ठित की गयी है । तीर्थकरे। के माता-पिता
चतुर्विशति तीर्थकरो के माता-पिता के नाम जैन ग्रन्थो मे निम्न प्रकार मिलते है। तीर्थकर
माता
पिता १ ऋषभनाथ
मरुदेवी २ अजितनाथ
विजया ভিনয়
नाभि
१. १/४६ २. प्रतिष्ठासारोद्धार, १/८०-८१. ३. प्रतिष्ठासारसग्रह, ५/६६-७० ४. २२१/५-६ ५. अभिधानचिन्तामणि, १/३६-४१ तथा तिलोयपण्णत्ती, निर्वाणकलिका,
प्रतिष्ठासारोद्धार, प्रतिष्ठातिलक आदि के माधार पर ।