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चतुर्विशति तीर्थकर
जाते हैं। भगवान की गर्भावस्था में रुचक वासिनी छप्पन देवियां तीर्थकरजननी की सेवा किया करती हैं। जन्मकल्याणक के अवसर पर इन्द्रों द्वारा भगवान् का जन्माभिषेक किया जाता है । तपकल्याणक के समय स्वयंबुद्ध प्रभु की स्तुति लौकान्तिक देव करते हैं। ज्ञानकल्याणक के समय धनपति द्वारा समवशरणकी रचना की जाती है। निर्वाणकल्याणक का समारोह भी सभी प्रकार के देवों द्वारा प्रायोजित किया जाता है । वर्तमान अवसर्पिणी के तीर्थकर
वर्तमान अवसर्पिणो में जो चौबीस तीर्थकर हुये हैं उनके नाम ये हैं :
१. ऋषभ २. अजित ३. संभव ४. अभिनंदन ५. सुमति ६. पद्मप्रभ ७, सुपार्श्व ८. चन्द्रप्रभ६. पुष्पदन्त १०. शीतल ११. श्रेयास १२. वासुपूज्य १३. विमल १४. अनंत १५. धर्म १६. शान्ति १७. कुन्थु १८. अर १६. मल्लि २०. मुनिसुव्रत २१. नमि २२. नेमि २३. पाव २४. महावीर
इन नामों के साथ अक्सर 'नाथ' पद लगाया जाता है। ऋषभनाथ को वृषभनाथ और आदिनाथ भी कहा जाता है । अनंतनाथ को अनंनजित, पुष्पदन्त को सुविधिनाथ, मुनिसुव्रत को सुव्रत, नेमिनाथ को अरिष्टनेमि और महावीर को वर्धमान, वीर, अतिवीर, सन्मति, चरमतीर्थकर, ज्ञातृनन्दन, नाथपुत्त, देवार्य आदि कई नामों से स्मरण करते है ।' तीर्थकरों के कुल
अभिधानचिन्तामणि के अनुसार मुनिसुव्रत और नेमिनाथ हरिवंश में उत्पन्न हुये थे, शेए तीर्थकर इक्ष्वाकु कुलमें । नेमिचन्द्र ने मुनिसुव्रत और नेमिनाथ को गौतम गोत्र का तथा अन्य को काश्यपगोत्रीय बताया है।'
१. अभिधानचिन्तामणि, १/२६-३० २. वही, १/३५ ३. प्रतिष्ठानिलक, पृष्ठ ३८६ ।